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मात्र एक नाता नहीं होता भाई

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मुबारक हो तुमको जन्मदिन तुम्हारा

मुबारक हो तुमको जन्मदिन तुम्हारा मिले प्यार तुमको सदा ही  हमारा स्नेह की स्नेह भरी दुआएं  लाडले कर लेना स्वीकार एक यही चाह रहती है दिल में मेरे हों सदा तुझे खुशियों के दीदार मेरे जीवन की हो तुम ज्योति और जीने का सुंदर सहारा मुबारक हो तुम को जन्मदिन तुम्हारा मेरे दिल ने आज स्नेह भरे दिल से पुकारा जीवन के हर चक्रव्यूह में प्रवेश संग निकलना भी आए तुझ को, हो हर अनुभव ने तुझे बखूबी निखारा अपने भीतर छिपे हनुमान को पहचान कर,करना हर संभव कोशिश, कर्मों से करना ना कभी तू किनारा मुबारक हो तुमको जन्मदिन तुम्हारा दिनकर से ले लेना तेज तूं इंदु से शीतलता ले लेना प्रकृति से सीखना तूं अनुशासन पहाड़ों से अडिगता ले लेना जुगुनू से चमकना सीखना तूं नदियों का प्रवाह भी ले लेना सागर से सीखना गहराई अम्बर से ऊंचाई ले लेना धरा से सीखना तूं संयम कोयल से मधुर वाणी ले लेना अपनी जिंदगी की किताब को लिखना अपने ही नजरिए से कभी किसी हाल में किसी को कोई कष्ट न तूं देना दिल पर दस्तक,जेहन में बसेरा,चित में  तेरे लाडले पक्के निशान सत्कर्म ही हों परिचय पत्र तेरा, हों सत्कर्म ही तेरी पहचान कर्म से रावण कर से ही ...

कर्मों से ही बनते रावण,कर्मों से ही बनते राम(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कर्मों से ही बनते रावण कर्मों से ही बनते राम किसको जगाते किसको सुलाते होते सबके अपने अपने काम आज अभी इसी पल से जप लो नाम राम का,जाने कब आ जाए जीवन की शाम सौ बात की एक बात है  राम ही तीर्थ राम ही धाम लंका से मन को अवध बनाने तक क्यों करते हो विश्राम महाभारत से इस चित को रामायण बना दो निष्काम बापू के ये बंदर तीन यही तो हमें सिखाते हैं बुरा न बोलो,बुरा न कहो,बुरा न सुमो पर हम इसे हल्के में ले जाते हैं हल्के में लेना इसको पड जाता है   अक्सर भारी  बहुत सो लिए अब तो जाग लें आई समझने की बारी अच्छी सोच सदा लाती है जीवन में  सु परिणाम कर्मों से ही बनते रावण कर्मों से ही बनते राम

हमारा परिचय पत्र

Poem on karma

जय श्री राम

यही होता है परिवार