महफूज़ रहे हर प्यारा बचपन, मिले हर बचपन को अधिकार। लगे मोहर न बेबसी बचपन को, मिले शिक्षा और मिलें संस्कार।। जाड़े की सर्द रातों में, मिष्ठुर बर्तनों की काली कालिमा, न नन्हे हाथों को पड़े छुड़ानी। हों किताबेंखेल खिलौने उन हाथों में, तांकि सफल हो सके हरेक जवानी।। न हो कोई अपराध, न हो कोई भ्र्ष्टाचार। एक बात आए समझ जन जन को प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।। बचपन ही भविष्य है जवानी का, यह सोच कदापि नहीं निराधार। हर बच्चा है विशेष स्वयं में, होता अथाह गुणों का भंडार।। बस भटकें न कदम,रहे न भरम सही समझ को मिल जाए आकार। आये सही तरह से करना लक्ष्य निर्धारित फले फूले खिले ये संसार।। स्नेह प्रेमचन्द