माँ अब वो आँचल नही मिलता,
माँ अब वो तेरी ममता का पुष्प नही खिलता.
जब गाती थी तूँ लोरी,
मैं चुपके से आकर तेरे आँचल में सो जाता था.
सिमट जाती थी सारी चितचिंताएँ,
मेरा जहांन तेरा आँचल बन जाता था।।
माँ अब वो आँचल नही मिलता,
जब मैं रो रो कर आंसुओं से तेरे,
दुपट्टे को गीला कर देता था।।
सुबड़ सुबड़ जब रोता था मैं,
तूँ झट सीने से लगा लेती थी,
जाने कितनी ही प्यार भरी बलियां
पल भर में दे देती थी।।
वो कितना पावन निर्मल आँचल था,
वो तेरी सौंधी सौंधी महक से सरोबार था,
माँ मेरे लिए तो देवी का दरबार था।।
माँ अब वो आँचल नहीं मिलता,
तेरी ममता का पुष्प अब किसी चमन में नही खिलता।।
खा पीकर जब नही धोता था हाथ मैं मेरे,
मलिन हाथों को तेरी ओढ़नी से पोंछा करता था,
तूँ ज़रा भी गुस्सा नही होती थी,
राजा बेटा कह कर तुम उसे पीला पीला कर लेती थी,
तनिक शिकन नही आती थी भाल तेरे मां,बस मेरी बलेंयाँ लेती थी,
तूँ किस माटी की बनी थी माँ, जो कहता,झट से दे देती थी।।
माँ अब वो आँचल नही मिलता,
जब नाक निकलती थी मेरी,
तब पल्लू तेरा ही खोजा करता था,
पल भर भी न सोचा करती तूँ,
मैं मलिन से मलिन तर उसे करता था।।
माँ अब वो आँचल नही मिलता।।
जहाँ थक कर चैन से मैं सो जाऊं,
समेट ले फिर से मुझे उसी आँचल में तू,
पूरे जहांन का सुख फिर मैं पाऊं।।
सपनों में भी गर मुझे कभी कभी जब वो
आँचल मिल जाता है,
फिर मैं उठना ही नही चाहता,सपना हकीकत से
बेहतर बन जाता है।।
माँ सच मे वो आँचल नहीं मिलता,
तेरी ममता का पुष्प नही खिलता।।
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