सबसे न्यारा,सबसे प्यारा,
माँ का रिश्ता सच्चा सहारा।
आदिशक्ति,मर्यादा की मूरत
रूप है माँ का कितना न्यारा।।
बिन कहे ही मन की जाने,
बच्चों की वो रूह पहचाने।
माँ होती है सच्ची संस्कारक,
पूरी दुनिया दिल से माने।।
हम हँसे, वो हँस देती है,
रोए तो रो देती है।
बच्चों के कष्टों से अपनी,
नयनों की कोर भिगोती है।।
ऐसी ममता की मोहिनी सूरत,
रूप है माँ का कितना प्यारा।
माँ कुदरत की सर्वोत्तम कृति,
पूरे जग ने है स्वीकारा।।
धरा सा धीरज,उड़ान गगन सी,
कर्मठता का थामे दामन।
प्रभु रूप में मिली है हमको,
सजता माँ से घर का आँगन।।
बचपन को संभाले,जवानी को निखारे,
बढ़ती उम्र में बन जाती हमराज।
कौन से रूप का करूँ चित्रण मैं,
पूरे विश्व की माँ होती है लाज।।
भाग्यशाली हैं हम सब जो,
सबने माँ को पाया है।
अपनी अनुपम रचना को देख,
आज ईश्वर भी मुस्काया है।।
अपने अपने बीबी बच्चे,
हम सब का संसार हैं।
माँ के लिए तो लेकिन,
हम आज भी एक परिवार हैं।।
माँ ने क्या क्या किया होगा,
यह तो लम्बी कहानी है।
पर जागें अब तो बच्चे सारे,
उन्हें ज़िम्मेदारी निभानी हैं।।
माँ की समस्या ही हमारी समस्या,
सांझे से अहसास हों।
किसी तरह का कोई भी गम,
अब माँ के न पास हो।।
सब बढ़ कर अब आगे आओ,
बूढ़े काँधों से बोझ हटाओ।
जिसने तुमको जन्म दिया है
उसके जन्म का कर्ज चुकाओ।।
सहज भाव से,सरल भाव से,
हम सब आज कसम खाएँ।
कभी करें न कोई कर्म ऐसा,
हिया जो माँ का सता जाएं।।
छोटी छोटी सी खुशियां तो,
मन माँ का हर लेती हैं।
कोई न आशा है हमसे,
बस सदा दुआ वो देती है।।
खुश रहो आबाद रहो,
पर अपने दिल के एक कोने में,
सदा जीवनदायिनी माँ को याद करो।।
बच्चा तो सदा से ही है,
मां की आंखों का तारा।
सबसे प्यारा,सबसे न्यारा,
माँ का रिश्ता,सच्चा सहारा।।
जान माँ के सच्चे स्वरूप को,
मेरी रूह ने आज पुकारा।
आदिशक्ति,ममता की मूरत,
रूप है माँ का कितना न्यारा।।
प्रेम की सड़क पर ममता का पुल है माँ,
प्रेम की कावड़ में अनुराग जल है माँ,
प्रेम तरुवर पर स्नेह सुमन है माँ,
प्रेम की घाटी में स्नेह की गूंज है माँ,
प्रेम के तबले पर अपनत्व की थाप है माँ,
प्रेम के सुरों में सौहार्द की सरगम है माँ।।
मां को परिभाषित करना भानु को दीप दिखाना है,
सत्यमेव जयते,माँ से बढ़ कर कुछ नही,
अंतरात्मा ने सत्य को स्वीकारा,
माँ का रिश्ता सबसे प्यारा,सच्चा सहारा।।
स्नेह प्रेमचन्द
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