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मज़हब नही सिखाता

मज़हब नही सिखाता आपस मे बैर रखना
आज नहीं, ये बचपन से सुनते आए हैं,
पर क्या सही मायनों में हमने ये जुमले
अपने जीवन मे अपनाए हैं????????
आए थे हरि भजन को,ओटन लगे कपास,
मुख्य था जो गौण बन गया,गौण बन गया खास,
आज की नही ये कहानी,दोहरा रहा है इतिहास,
क्या करने आये थे,क्या कर रहे हैं हम,
क्या आत्ममंथन के आयाम हमने जीवन
में अपनाए हैं।।
मज़हब नही सिखाता आपस मे बैर रखना,
आज नही,ये बचपन से सुनते आए हैं।।
अहम से वयम की ओर,
 स्वार्थ से परमार्थ की ओर,
स्व से सर्वे की ओर,
हिंसा से अहिंसा की ओर
हों सब उन्मुख,
अंतरात्मा ने यही भाव 
सदा चित चित में जगाए हैं।।
        स्नेहप्रेमचन्द




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