कंठ है कान्हा,तो आवाज़ हूँ मैं,
गीत है कान्हा,तो साज़ हूँ मैं,
रीत है कान्हा,तो रिवाज़ हूँ मैं,
भाव है कान्हा,तो अल्फ़ाज़ हूँ मैं।।
नयन हैं कान्हा,तो नूर हूँ मैं,
हाला है कान्हा,तो सरूर हूँ मैं,
कंठ हैं कान्हा,तो आवाज़ हूँ मैं,
पंख हैं कान्हा,तो परवाज़ हूँ मैं।।
अधर हैं कान्हा,तो मुरली हूँ मैं,
माँग हैं कान्हा,तो सिंदूर हूँ मैं,
मीत हैं कान्हा,तो प्रीत हूँ मैं,
संगीत हैं कान्हा,तो गीत हूँ मैं।।
राजा है कान्हा,तो रानी हूँ मैं,
ग्वाला है कान्हा,तो गैया हूँ मैं,
ममता है कान्हा,तो मैया हूँ मैं।।
मंज़िल हैं कान्हा,तो राह हूँ मैं,
कशिश हैं कान्हा,तो चाह हूँ मैं,
लक्ष्य हैं कान्हा,तो प्रयास हूँ मैं,
कान्हा के लिए सच में खास हूँ मैं।।
इमारत है कान्हा,तो आधार हूँ मैं,
विश्वास है कान्हा,तो प्यार हूँ मैं,
बिवेक है कान्हा,तो विचार हूँ मैं,
धनुष हैं कान्हा,तो टनकार हूँ मैं।।
इबादत हैं कान्हा,तो मस्ज़िद हूँ मैं,
सरोवर है कान्हा,तो शीतल जल हूँ मैं,
परिंदा हैं कान्हा,तो पंख हूँ मैं,
परीक्षा है कान्हा,तो अंक हूँ मैं।।
नदिया है कान्हा,तो बहाव हूँ मैं,
समझौता हैं कान्हा,तो सुझाव हूँ मैं,
बादल हैं कान्हा,तो बरखा हूँ मैं,
सूत हैं कान्हा,तो चरखा हूँ मैं।।
अभिव्यक्ति हैं कान्हा,तो अहसास हूँ मैं,
श्रम हैं कान्हा,तो विकास हूँ मैं,
दिल हैं कान्हा,तो धड़कन हूँ मैं,
सुर हैं कान्हा,तो सरगम हूँ मैं।।
पालकी है कान्हा,तो कहार हूँ मैं,
खड़ग है कान्हा,तो धार हूँ मैं,
चमन है कान्हा,तो बहार हूँ मैं,
कलम हैं कान्हा,तो आकार हूँ मैं।।
मंदिर हैं कान्हा,तो मूरत हूँ मैं,
आईना हैं कान्हा,तो सूरत हूँ मैं,
प्रेम हैं कान्हा,तो विश्वास हूँ मैं,
भगति हैं कान्हा,तो अरदास हूँ मैं।।
पतंग हैं कान्हा,तो डोर हूँ मैं,
दिनकर हैं कान्हा,तो उजली भोर हूँ मैं,
रंग हैं कान्हा,तो रंगरेज हूँ मैं,
भास्कर हैं कान्हा,तो तेज हूँ मैं।।
साहित्य हैं कान्हा,तो कविता हूँ मैं,
जल हैं कान्हा,तो सरिता हूँ मैं,
मांझी हैं कान्हा,तो नौका हूँ मैं,
भाग्य हैं कान्हा,तो मौका हूँ मैं।।
दीप हैं कान्हा,तो ज्योति हूँ मैं,
सीप हैं कान्हा,तो मोती हूँ मैं,
चँदा हैं कान्हा,तो शीतलता हूँ मैं,
शास्त्र हैं कान्हा,तो पावनता हूँ मैं।।
रवि हैं कान्हा,तो आरुषि हूँ मैं,
इंदु हैं कान्हा,तो ज्योत्स्ना हूँ मैं,
चेतना हैं कान्हा,तो स्पंदन हूँ मैं,
विचार हैं कान्हा,तो मंथन हूँ मैं।।
मंच हैं कान्हा,तो किरदार हूँ मैं,
ज़िम्मेदारी हैं कान्हा, तो अधिकार हूँ मैं,
पर्व हैं कान्हा,तो उल्लास हूँ मैं,
पुष्प हैं कान्हा,तो सुवास हूँ मैं।।
गीता हैं कान्हा,तो कर्म हूँ मैं,
रामायण हैं कान्हा,तो धर्म हूँ मैं,
कर्मयोगी हैं कान्हा,तो प्रयास हूँ मैं,
जल हैं कान्हा,तो प्यास हूँ मैं।।
सागर हैं कान्हा,तो बहती सरिता हूँ मैं,
भाव हैं कान्हा,तो मधुर सी कविता हूँ मैं,
दो नही एक ही तो है अस्तित्व हमारा,
विलय हैं हम एक दूजे में,ज़र्रे ज़र्रे में,
जान चुका है शाश्वत सत्य ये जग सारा।।
किसी रिश्ते की मोहर का नही
प्रेम हमारा है मोहताज़,
कृष्ण राधा है,राधा कृष्ण है
सर्वत्र,सर्वदा इसी सत्य का बज रहा है साज।।
युग आएंगे,युग जाएंगे,
सूरदास,रसखान से कितने ही हमारे गुण गाएंगे,
हम एक थे,एक हैं,एक ही रहेंगे,
हमारे एकत्व के कण,सदा फ़िज़ां को महकायेंगे।।
राधा कृष्णा
स्नेह प्रेमचन्द
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