एक नही दो घरों को रोशन करती हैं बेटियाँ प्यारी
एक सजाए बाबुल का अँगना,दूजे साजन की फुलवारी।।
कोमल हैं कमज़ोर नहीं,यही समझना है बहुत ज़रूरी,
बेटियाँ ही तो होती हैं,ताउम्र नही जो रखती दूरी।।
फ़िज़ां में महकने वाली सौंधी सौंधी सी महक हैं बेटियाँ,
जीवन को जीवंत बनाने वाली होती हैं बेटियाँ,
उत्सव,उल्लास,आनन्द से घर द्वार महकाने वाली होती हैं बेटियाँ,
जीवन की भोर,दोपहर,साँझ हर पहर में साथ निभाने वाली होती हैं बेटियाँ,
सागर से भी गहरी,धरा सी शीतल,पवन सी हल्की,गिरी सी ऊँची होती हैं बेटियाँ,
देवी नही,लक्ष्मी नही,बस बेटी को बेटी रहने दो,
जो चाहे उसे अपने दिल से दिल की कहने दो,
वो भी हैं अपने बाबुल के आंगन की चिरइया,उसे साजन घर भी यूँ ही चहकने दो,
सहज,सुरक्षित,उन्मुक्त रहें वे,जैसी हैं वैसी ही रहने दो।।।
वस्तु नही वे भी हैं व्यक्ति विशेष,उनके तन के भूगोल की बजाय मन के विज्ञान की सरिता बहने दो।।
स्नेह प्रेमचन्द
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