Skip to main content

मेहनत और आलस्य

ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर एक दिन दोनों मिल जाते हैं।
करते हैं कुछ बातें ऐसी,जिसे हर युग मे सार्थक सा हम पाते हैं।।
देख दमकता चेहरा मेहनत का,
किए प्रकट आलस्य ने निज यूँ उदगार।
कभी नही थकती,कभी नहीं रुकती,
कभी नहीं करती तुम हाहाकार।।
दिन पर दिन हो जाती हो और भी सुंदर,
कहो कैसे संभव है ये चमत्कार????
जग पूरा मानता है लोहा तुम्हारा,
है अति मनभावन तेरा दीदार।।
सुन आलस्य की बोली बातें,
मेहनत मंद मंद मन से मुस्काई।
सुनो प्रिय तुम्हे आज बताऊँ,
मुझे तो युगों युगों से ये बात समझ में है आई।।
"कर्म"हैं मेरे प्यारे"प्रीतम"
निस दिन रंग उनका मुझ पर चढ़ जाता है।
हो जाती हूँ मैं और भी सुंदर,
हर कोई मुझे दमकता हुआ पाता है।।
तुम्हारी तो सोच ही है दुश्मन तुम्हारी,
सोच से कर्म और कर्म से ही तो,
निश्चित होते हैं परिणाम।
तुम हाथ पर हाथ धरे रह गए युगों से,
क्यों थके नहीं लेलेकर विश्राम????
मुझे तो लगते हो हताश, रोगी,
अवसादग्रस्त से तुम,
जीने का मतलब नही होता आराम।।
जिसे तुम कहते हो आनंद और मस्ती,
मैं कहती हूँ है वो जीना हराम।
हो जाओ विलय तुम मुझ में साथी,
मानवता करेगी फिर तुमको भी सलाम।।
कर्म ही पूजा है,कर्म ही गीता है,
है कर्म ही  रामायण और कुरान।।
कर्म की कावड़ में जब जल मेहनत का
 भर जाता है,
तृप्त हो जाता है,जो पीता है उसको,
सच्ची संतुष्टि पाता है।
कर्म तो वो अनहद नाद है बन्धु,
सुन रोम रोम हर्षाता है।।
"क्रोश"तेरे पिता हैं आलस्य और
"हताशा"है तेरी माता।
"अवसाद"है भाई,"कुंठा"है बहना,
"वासना"से है पत्नी का नाता।।
जन्म तो भाग्य से होता है,
पर कर्मों से बदल सकते हो संसार।
पर ज़रूरी है झाँको अपने भीतर,
जानो क्या क्या हैं चित में चंचल विकार।।
आत्ममंथन कर आ सकता है घणा सुधार,
आत्मबोध होगा जिस दिन,
चेतना चित में हलचल मचाएगी,
उस दिन दौड़े आओगे तुम पास मेरे,
मेहनत राह में खड़ी तोहे मिल जाएगी।।
                स्नेहप्रेमचन्द

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

बुआ भतीजी

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...