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परिंदे

पर निकलते ही परिंदे आसमां के हो गए,
भूल गए पालनहारों को,
एक नई दुनिया में खो गए।।
माना ज़िन्दगी के रंग अनोखे,
ये अपनी तरफ लुभाते हैं।
पर अपनी प्राथमिकताओं को क्यों,
हम इतनी आसानी से भुलाते हैं???
ज़िंदगी की भूलभुलैया में,
भूल अपनों को ही,
हम सब ऐसे कैसे सो गए?
कुछ ज़िमम्मेदारियाँ हैं हमारी भी उनके लिए,
ये क्यों और कैसे हम ऐसे हो गए???
पर निकलते ही परिंदे आसमां के हो गए।
धरा पर जन्म दिया था जिस माँ ने हमको,
संवेदनहीन से उसके लिए हम हो गए।।
खो गए अपनी ही छोटी सी परिधि में,
पत्ते भूल जड़ों को बस बेलों के हो गए।
पर निकलते ही परिंदे----–--------------।।
भूल गए उस महान वृक्ष को हम,
जिसका कभी हम छोटा सा हिस्सा थे।
हो गई सीमित और छोटी सी दुनिया हमारी,
माँ बाप तो अब भूला हुआ सा एक किस्सा थे।।उऋण नहीं हो सकते कभी मात पिता के ऋण से,
ये इतने उदासीन से कैसे हम हो गए????
पर निकलते ही परिंदे-–-------------------।।
ये वही बागबां तो हैं जो किल कारी से तुम्हारी
कितना खुश हो जाते थे,
देख तुम्हारी मोहिनी सूरत ,वे अपनी थकान मिटाते थे।।
अब देख कर भी अनदेखा करते हो तुम उनको,
कौन से हैं वे नयनाभिराम दृश्य,जो तुम्हारे नयनो
को इतना लुभा गए????
वो बापू की लाठी की पहचानी सी खट्ट खट्ट,
वो बूढ़ी माँ की खाँसी की थकी सी खन खन,
क्यों नश्तर से कानों में तुम्हारे चुभा गए???
कांपते हैं हाथ और डगमगाते हैं कदम उनके,
क्यों दिखता नहीं ऐसा दृश्य तुम्हे,
कौन सा चश्मा कब कौन तुम्हारी आँखों पर चढ़ा गए???
कर लिया तुमने भी सहज स्वीकार इसको,
तुम तो पीड़ा अपनों की ही बढ़ा गए।
जिस उपवन के पुष्प थे तुम,
उसी उपवन से उदासीन से हो गए।।
जो लाए थे तुम्हे जग में बन्धु,
वो इतने अपने,इतने बेगाने कैसे हो गए???
पर निकलते ही परिंदे आसमां के हो गए।।
अब बेला जागने की आई है,
हम क्यों इतनी देर तक सो गए??
मत दौड़ो इस खोखली सी दौड़ में तुम,
लगता है पंगु से हो गए।।
भूल गए पालनहारों को,
एक नई दुनिया मे खो गए।।
पर निकलते ही-------------------।।
"कर्तव्य कर्म"हैं कुछ तो हमारे,
हमे उनको श्रद्धा से निभाना है।
जीवन तो है एक सराय बन्धु,
थोड़ा रुक कर हमें चले जाना है।।
आत्मबोध होगा जिस दिन,
चेतना चित में हलचल मचाएगी,
आत्मग्लानि उपजेगी फिर उस दिन भाई,
वो बेला लौट कर नही कभी आएगी।।
हृदय की पाती पढ़ना भूले हम,
स्वार्थ में मानो अंधे से हो गए।
छोड़ माँ बाप को तन्हाई में,
क्यों आत्मा से ही हम सो गए????
पर निकलते ही परिंदे आसमां के हो गए।।
और तो कुछ भी भूलो बन्धु,
पर रखना याद इतनी सी बात।
इतिहास दोहराता है स्वयं को,
पछतावे की मिलती है सौगात।।
आत्मानन्द का नहीं होता अनुभव,
ये कैसे बीज तुम बो गए???
स्वार्थ की ही फसल उपजेगी इस पर तो,
प्रेमाकुर तो सारे खो गए।।
पर निकलते ही परिंदे आसमां के हो गए।
भूल गए पालनहारों को,
एक नई दुनिया मे खो गए।।
                स्नेह प्रेमचन्द

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