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मुलाकात

राधा,मीरा और रुक्मणि एक दिन स्वर्ग में मिल जाती हैं,
तीनों कान्हा की प्रेम दीवानी,कुछ ऐसे बतियाती हैं।।
कहा रुक्मणि ने दोनों से,"कैसी हो मेरी प्यारी बहनों,कैसी बीत रही है ज़िंदगानी??
हम तीनों के प्रीतम तो कान्हा ही हैं,
पर सुनाओ आज मुझे अपनी अपनी प्रेम कहानी।
सबसे पहले बोली मीरा,"मैं तो सांवरे के रंग रांची, भाया न मुझे उन बिन कोई दूजा,
बचपन से ही उन्हें माना पति मैंने,
निस दिन मन से करी उनकी पूजा।।
उन्हें छोड़ किसी और की कल्पना नहीं हुई
मुझे कभी स्वीकार।
ज़हर का प्याला पी गई मैं तो,
किए सपनों में भी कान्हा दीदार।।
नहीं राणा को मैंने माना कभी भी अपना 
सच्चा भरतार।
करती थी,करती हूं,करती रहूंगी सदा शाम से सच्चा प्यार।।
मीरा के समर्पण को सुन रुक्मणि को ईर्ष्या हो आई,
उन्मुख हो राधा से पूछा उसने,"कहो तुमने कैसे ज़िन्दगी बिताई????
राधा बोली,क्या हैं कान्हा मेरे लिए,लो आज तुम्हे बताती हूँ,
भावों और शब्दों के आईने से सच्ची तस्वीर दिखाती हूँ।।
इबादत हैं कान्हा,तो मस्ज़िद हूँ मैं,
सरोवर हैं कान्हा,तो शीतल जल हूँ मैं,
परिंदा है कान्हा तो पंख हूँ मैं,
परीक्षा है कान्हा तो अंक हूँ मैं, 
मंदिर है कान्हा तो मूरत हूँ मैं,
आईना है कान्हा तो सूरत हूँ मैं,
प्रेम है कान्हा तो विश्वास हूँ मैं,
भगति है कान्हा तो अरदास हूँ मैं,
अभिव्यक्ति है कान्हा तो अहसास हूँ मैं,
श्रम है कान्हा तो विकास हूँ मैं, 
तन है कान्हा तो श्वास हूँ मैं,
दिल है कान्हा तो धड़कन हूँ मैं,
सुर है कान्हा तो सरगम हूँ मैं,
नदिया है कान्हा तो बहाव हूँ मैं,
समझौता है कान्हा तो सुझाव हूँ मैं, 
बादल है कान्हा तो बरखा हूँ मैं
सूत है कान्हा तो चरखा हूँ मैं।।
मेरी तो नस नस में हैं कान्हा,
मेरी रूह को तो आज भी कान्हा की बांसुरी
देती है सुनाई।
उनके होने का अहसास हर पल,पल पल रहता है मुझ को,
नहीं हुई कभी मेरी उनसे विदाई।।
मेरा नाम लिया जाता है आज भी संग कान्हा के,
मैंने सच्चा प्रेम निभाया है।
हर घर हर मंदिर में लोगों ने हम दोनों को ही संग में सजाया है।।
मैं कृष्ण हूँ, कृष्ण राधा है,
मैंने पूरी तरह से कान्हा को पाया है।
मैं अलग नही हूँ,अलग हो ही नही सकती,
एक ही हैं हम,अस्तित्व मेरा मेरे कान्हा में ही समाया है।।
जब तक साथ रहे वो मेरे,
हम संग संग रास रचाते थे।
मंत्रमुग्ध हो जाती थी गोपियाँ,
वो प्रेम का पाठ पढ़ाते थे।।
प्रेममय था तब सब कुछ मेरी बहना,
सब प्रेम की गंगा बहाते थे।
तब प्रेम की मीठी बंसी कान्हा,
बड़े प्रेम से बजाते थे।।
मैं सुन दौड़ी चली आती थी,
वो प्रेम की सेज सजाते थे।
वृंदावन की गली गली में,
मेरे कान्हा माखन चुराते थे।।
चितचोर हैं मेरे प्यारे कान्हा,
दिल मेरा ऐसा उन्होंने चुराया है।
मेरे हिवड़े में आज भी,
मेरे प्यारे कान्हा का अक्स ही छाया है।।
मैं तो मेरी प्यारी बहना,
कब से हो चुकी हूं उनसे एकाकार।
घुल गयी ऐसे जैसे पानी में शक्कर,
है उनका मुझ पर पूरा अधिकार।।
प्रेम का मतलब है देना,
करती हूं मैं यह स्वीकार।
यही सिखाया है मुझे मेरे कान्हा ने,
प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।।
अब तुम बतलाओ प्यारी रुक्मणि,
सुन ली हम दोनों की तो पूरी कहानी।
द्वारका में द्वारकाधीश संग,
कैसी बिताई तुमने ज़िंदगानी???
यमुना के मीठे पानी से,
 सागर के खारे पानी तक,
क्या अंतर मेरे कान्हा में आया है??
प्रेम की बंसी बजाने वाले ने,
 सुदर्शन चक्र भी 
तो चलाया है।।
राधा के सच्चे प्रेम की सुन कर कहानी।
दंग सी रह गई रुक्मणि महारानी।।
बहुत सोच कर फिर रुक्मणि के,
फूटे कुछ ऐसे उदगार।
आज खुल गई आंखें मेरी,
हो गए सारे भरम मेरे आज तार तार।।
तुम दोनों का कद तो मुझसे,
आज कुछ ज़्यादा ही बढ़ आया है।
मैं हो गई हूं कुछ और भी छोटी,
मुझे सत्य आज युगों युगों के बाद,
तुम दोनों ने ही समझाया है।।
मैंने भी तुम दोनों की भांति,
उनको सदा मन से अपने चाहा है।
समझा सदा खुद को अधिक किस्मत की धनी
मैंने,
क्योंकि पति रूप में उनको पाया है।।
न मीरा के न राधा के,
सिंदूर तो रुक्मणि की मांग में शाम ने सजाया है।
बेशक मंदिर में मेरा किया हरण,
पर अर्धांगनी रूप में मुझे कान्हा ने अपनाया है।
दुनिया के हर सुख को बहनों,
उन्होंने मुझ पर लुटाया है।।
पर तुम दोनों जो दम दम दमकती हो बहनों,
वो रूप मैंने आज तलक भी नही पाया है।
द्वारकधीश रहे व्यस्त महाभारत युद्ध मे,
पार्थ के सारथि का किरदार बखूबी निभाया है।।
पर जीता गया यह युद्ध छल और बल दोनो
से ही बहनों,
जीत के लिए कान्हा ने पांडवों को छल
करना भी सिखाया है।।
पर धर्म की होती आयी है जीत सदा,
ये पूरे जग को माधव ने ही बताया है।
जब जब होती है हानि धर्म की,
तब तब मोहन दौड़ा आया है।।
बहाया गीता का ज्ञान उन्होंने,
हर शक्श के काम जो आया है।
राधा मीरा मेरी प्यारी बहनों,
हम तीनों के ही नहीं,
कान्हा ने तो हर चित्त में घर एक बसाया है।।
जब तक धरा और गगन रहेंगे,
कान्हा कण कण में धर्म और करुणा भरेंगे।।
          स्नेह प्रेमचन्द

Comments

  1. What a beautiful illustration of Lord Krishna’s disciple’s beloved’s and wife’s feelings .....amazingly exhibiting harmony between love n envy....

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  2. What a beautiful illustration of Lord Krishna’s disciple’s beloved’s and wife’s feelings .....amazingly exhibiting harmony between love n envy....

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