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आज भी आई,कल भी आई

आज भी आई, कल भी आई,
कौन सी ऐसी बेला है,
जब माँ तूँ न हो मुझे याद आई।।
वे कहते हैं न जाने वालों को
किया करो तुम याद,
पर भूलना कौन सा है हाथ हमारे,
उन चेहरों से ही तो जीवन,
हुआ था आबाद।।
माँ तूँ ही तो थी,
ज़िन्दगी का परिचय अनुभूतियों
से कराने वाली,
हर समस्या का समाधान बताने वाली,
जीवन यात्रा को सहज सुंदर बनाने वाली,
पंखों को परवाज़ दिलाने वाली,
जीत हो या हो हार,
हर हाल में अपनाने वाली,
हर जख्म पर मरहम लगाने वाली,
क्या अहमियत है मेरी जीवन मे तेरे,
जाने कितनी ही बार बताने वाली,
एक ऐसी किताब जिसके हर हर्फ में
ममता बड़ी मौज से रहती थी,
एक ऐसा कांधा जहां दर्द को
मिलता था चैन,
एक ऐसा साथ चाहे दिन हो या हो रैन,
हर उपलब्धि साथ जिसके साँझा करने
का हो मन,
हर नुकसान जिसकी न हो सके भरपाई,
वो भी बता तुझे मिलता था आराम।।
कैसे भूलूँ माँ तुझको,मुझे तो ये बात
समझ ही नही आई।
आज भी आई,कल भी आई
कौन सी ऐसी बेला है माँ
जब तूँ न हो याद आई।।

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