Skip to main content

बेचैनी और सुकून

एक दिन बेचैनी ने कहा सुकून से,"हो शांत से गहरे सागर तुम,थाह तुम्हारी आज तलक न किसी ने पाई"
मैं नदिया के भंवर के जैसी उद्विग्न और चंचल,
कोई शांत,सीधी,उजली सी राह न दी कभी दिखाई।।
कहा सुकून ने बेचैनी से,"होता है जहाँ मोह,काम,क्रोध और भौतिक सुखों को पाने की तीव्र लालसाएँ।
तुम बिन बुलाए दौड़ी चली जाती हो वहाँ पर,
ठहराव की नहीं दिखाई देती तुम्हें राहें।।
"आक्रोश"तुम्हारे पिता हैं बेचैनी," चितचिंता"है तुम्हारी माता।
आशंका है बहन तुम्हारी,आवेग से है भाई का नाता।।
नहीं ज़रूरी मैं रहूं महलों में,मुझे तो फुटपाथ भी आते हैं रास।
पर तुम तो कहीं भी नही टिक पाती,पूरे ब्रह्मांड में तुम्हारा नहीं है वास।।
बच्चे की मुस्कान में हूँ मैं, माँ की ममता में रहता हूँ,
पिता की परवरिश में हूँ, बड़ी सहजता से कहता हूँ।।
जिस दिन तुम्हे जीवन की सही सोच समझ में आएगी,
विलय हो जाओगी उस दिन तुम मुझमें,
बेचैनी सुकून बन जाएगी,बेचैनी सुकून बन जाएगी।।
              स्नेह प्रेमचन्द

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

बुआ भतीजी