माँ से ही सुंदर है ये जहान,
कुदरत का माँ अनमोल वरदान।
प्रेम आधार है माँ की ममता का,
हो जाए हमसब को भान।।
हर शब्द पड़ जाता है छोटा,
जब माँ का करने लगो बखान।
न कोई था,न कोई है,न कोई होगा,
माँ से बढ़ कर कभी महान।।
माँ बिन सूना है ये संसार,
माँ ही जोड़ती है रिश्तों के तार।
हमारे बिखरे बिखरे से जीवन को,
असंख्य बार माँ ही तो देती है सँवार।।
अगाध प्रेम की गाथा है माँ,
वात्सल्य की मूरत है माँ,
पूरे जग में कहीं ढूंढ लो,
सबसे मोहिनी सूरत है माँ।।
ओस की बूंद हैं बच्चे तो,
माँ सागर की है गहराई।
उसकी ममता के सागर में,
हमने ही न डुबकी लगाई।।
इसे कहें विडंबना या दुर्भाग्य,
जीते जी माँ के ये बात समझ न आई।
क्यों देते हैं जीवन की साँझ में उसे तन्हाई।।
सुख में है माँ,दुख में है माँ,
हर लम्हे,हर शै में है माँ,
बड़े बड़े सपने दिखाती माँ,
पंखों को परवाज़ दिलाती मां,
खुद पिस पिस कर औलाद का जीवन,
सरल,सहज सा बनाती माँ,
कर्मयोगिनी,ममता की देवी,
सच मे खुदा का है वरदान।
एक बात आती है समझ में,
माँ से ही सुंदर है ये जहान।।
हर शब्द पड़ जाता है छोटा,
जब माँ का करने लगो बखान।।
रिश्तों के ताने बानो को माँ,
सहजता से लेती है बुन।
मेहनत की कुदाली से जोत देती है खेत कर्म का,
बजाती है सदा वात्सल्य की धुन।।
बिन बतलाए,बिन जतलाये,
कर देती है इतने काम महान।
एक अक्षर के छोटे से शब्द में,
सिमटा हुआ है पूरा जहान।।
माँ वो डोर है जो अपनी हर पतंग को,
चाहती है देना अंनत गगन की असीम ऊँचाई।
दुर्भाग्य है ये उस औलाद का,
जिसको ये कहानी समझ न आई।।
जीते में गले लगाती है तो,
हार में भी साथ निभाती है माँ।
कांटे चुन लेती है औलाद के,
फूलों से जीवनसेज सजाती है माँ।।
प्रेमदीप में ममता की बाती,
सतत धीरज से जलाती है माँ।
खुद गीले में सोकर सूखे में हमें सुलाती माँ,
होती है माँ पास जिसके,
जग में है वो सबसे धनवान।
माँ से ही सुंदर है ये जहांन।।
त्याग है माँ,समर्पण है माँ,
है माँ ममता का गहरा सागर।।
धन्य हो जाता है बच्चा,
ईश्वर को माँ के रूप में पाकर।।
माँ की ढपली से सदा ममता का,
मधुर कर्णप्रिय स्वर ही निसृत होता है।
हम ही नहीं सुन पाते कई बार,
माँ का हर कथन अमृत होता है।।
हमारे जन्म से अपनी मृत्यु तक,
जो दिल मे हमे बसाती है।
और नही कोई प्यारे बन्धु,
वो सिर्फ और सिर्फ माँ कहलाती है।।
सबसे अनमोल,अदभुत, वंदनीय वरदान।
माँ से ही सुंदर था,सुंदर है,सुंदर रहेगा ये जहान।।
स्नेह प्रेमचन्द
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