सब कुछ बदला,वो न बदली,माँ सा नही करता कोई प्यार,
स्नेह,समर्पण,सामंझस्य की त्रिवेणी, है वही शिक्षा,वही संस्कार।।
निश्छल,निःस्वार्थ, अगाध प्रेम की गंगोत्री,
होती माँ ही जग में तारणहार।
ईश्वर का दूजा पर्याय है माँ,
नित नित करती जाती परिष्कार।।
शब्दों में न भावों में,न किसी अभिव्यक्ति न इज़हार में,
है वो सामर्थ्य जो माँ का कर सकें बखान।
कोशिश है बस इतनी सी मेरी, सार्थक शब्दों की पहना घाघरी,
भावों की चुनर ओढा कर,कर सकूं बयान।
माँ गीता,माँ रामायण,माँ ही तो है पाक कुरान।।
नाराज़ होकर भी नाराज़ जिसे नही रहना आता,
ऐसा अदभुत होता है माँ का बच्चे से नाता।
दिन बदले,ऋतु बदली,पर माँ में बदलने का कभी नही आया विचार।।
काश बता पाती मेरी लेखनी क्या होती है माँ,
इस सत्य को उजागर करने में जाती है हार।
शायद कई भावों को शब्द दे ही नही पाते इज़हार।।
कोई शब्दकोश बना ही नही ऐसा,समा जाता जिसमे माँ का प्यार।।
सब कुछ बदला, वो न बदली,माँ के लिए,बच्चे ही होते उसका संसार।
बिन मांगे ही दुआओं का देती रहती आजीवन उपहार।।
फिर वही माँ मिले मुझे मेरे हर जीवन में, माँ ही रीत,रिवाज़,आचार,व्यवहार।।
Outstanding...
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