नूर ए ज़िन्दगी गर कहा जाए माँ को,
तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी।
रोशनी ए चिराग गर कहा जाए माँ को,
तो ये सच्चे अहसासों की उम्दा अभिव्यक्ति होगी।
अल्फ़ाज़ ए किताब गर कहा जाए माँ को,
तो वो भी इतना ही सच होगा,
जितना कि बच्चे में मासूमियत होना।
गज़ल ए रूहानियत गर कहा जाए माँ को,
वो तो सागर में नीर होने जैसा सच होगा।
धड़कन ए दिल गर कहा जाए माँ को,
ये शब्दों की ही नहीं, भावों की खूबसूरती होगी।।
अश्क ए नयन गर कहा जाए माँ को,
ये बात बड़ी सहज सुंदर सी होगी।
समाधान ए समस्या कहा जाए माँ को,
ये भी उतना ही सच होगा जितना
भोर के बाद साँझ का आना।।
महक ए कुसुम गर कहा जाए माँ को
तो एकदम वो इतना सही होगा
जैसे जुगुनू में चमक का होना,
नज़्म ए मौसिक़ी कहा जाए गर माँ को,
वो भी कोयल में मीठी कूक होने जैसा सही होगा।।
जिजीविषा ए ज़िन्दगी गर कहा जाए माँ को
ये तन में श्वाशों का होने सा सच होगा।।
मरहम ए घाव कहा जाए माँ को
वो भी उतना ही सच है जैसे आदित्य
के बाद इंदु का आना।।
परवाज़ ए पंख कहना भी माँ को उतना ही
सही होगा,
जितना भोर में भास्कर का उदित होना।।
जश्न ए ज़िन्दगी कहना भी उतना ही सही है माँ को,जितना प्रकृति में हरियाली का होना।।
बहार ए चमन कहना भी उतना ही उचित होगा माँ को,
जैसे बिजली में चमक का होना।।
कोई शब्दकोश बना ही नही ऐसा जिसमे माँ की सम्पूर्ण उपमाएँ समा सकें।।
स्नेहप्रेमचंद
बहुत खूबसूरत,,,👍👌👌
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