Skip to main content

नूर ए ज़िन्दगी

नूर ए ज़िन्दगी गर कहा जाए माँ को,
तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी।
रोशनी ए चिराग गर कहा जाए माँ को,
तो ये सच्चे अहसासों की उम्दा अभिव्यक्ति होगी।
अल्फ़ाज़ ए किताब गर कहा जाए माँ को,
तो वो भी इतना ही सच होगा,
जितना कि बच्चे में मासूमियत होना।
गज़ल ए रूहानियत गर कहा जाए माँ को,
वो तो सागर में नीर होने जैसा सच होगा।
धड़कन ए दिल गर कहा जाए माँ को,
ये शब्दों की ही नहीं, भावों की खूबसूरती होगी।।
अश्क ए नयन गर कहा जाए माँ को,
ये बात बड़ी सहज सुंदर सी होगी।
समाधान ए समस्या कहा जाए माँ को,
ये भी उतना ही सच होगा जितना
भोर के बाद साँझ का आना।।
महक ए कुसुम गर कहा जाए माँ को
तो एकदम वो इतना सही होगा
जैसे जुगुनू में चमक का होना,
नज़्म ए मौसिक़ी कहा जाए गर माँ को,
वो भी कोयल में मीठी कूक होने जैसा सही होगा।।
जिजीविषा ए ज़िन्दगी गर कहा जाए माँ को
ये तन में श्वाशों का होने सा सच होगा।।
मरहम ए घाव कहा जाए माँ को
वो भी उतना ही सच है जैसे आदित्य
के बाद इंदु का आना।।
परवाज़ ए पंख कहना भी माँ को उतना ही
सही होगा,
जितना भोर में भास्कर का उदित होना।।
जश्न ए ज़िन्दगी कहना भी उतना ही सही है माँ को,जितना प्रकृति में हरियाली का होना।।
बहार ए चमन कहना भी उतना ही उचित होगा माँ को,
जैसे बिजली में चमक का होना।।
कोई शब्दकोश बना ही नही ऐसा जिसमे माँ की सम्पूर्ण उपमाएँ समा सकें।।

               स्नेहप्रेमचंद

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

बुआ भतीजी

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...