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My best mother| माँ से बढ़ कर नहीं कोई भी छाया

माँ से बढ़कर नहीं जीवन में कोई भी छाया,
भाग्यशाली है वो इंसा, मातप्रेम है जिसने पाया।।
आस है माँ,विश्वास है माँ,तन में जैसे श्वास है माँ,
माँ है तो ये फ़िज़ां है सुंदर,
 सुर की मीठी सरगम माँ।।
आदित्य का तेज है माँ,
है माँ ही इंदु की शीतल छाया।
भाग्यशाली है वो इंसा, 
मातप्रेम है जिसने पाया।।
माँ चली जाती है जब इस जग से,
हो जाता है सूना ये संसार।
माँ के अस्तित्व से है अस्तित्व हमारा,
माँ सृष्टि को,ईश्वर का सर्वोत्तम उपहार।।
नहीं समझते कीमत इस उपहार की हम,
सोच अपनी को,है हमने ही पंगु बनाया।
माँ से बढ़ कर नहीं जीवन मे कोई भी छाया।।
माँ के लिए तो बच्चे ही होते उसका पूरा संसार,
पर बच्चों के संसार में क्यों कहीं खो सी जाती है वो, इस सोच का समझ ही नही आया आधार।।
हमारी प्राथमिकताओं में ही नहीं रहती माँ,
माँ के दूध को हमने है लजाया।
लगे तोलने माँ के प्यार को,
माँ तो है अनमोल सा साया।।
भाग्यशाली है वो इंसा, 
जिसने मातप्रेम है पाया।।
माँ के जाने से पल भर में ही,
हम बड़े हो जाते हैं।
एक माँ का आँचल ही तो है ऐसा,
जहाँ सुकून हम पाते हैं।।
माँ सुकून है,माँ शांति है,सहजता के दूसरा पर्याय है माँ,
प्रेम,ममता,धैर्य ही नहीं, जीवन में सबसे अच्छी राय है माँ।।
सागर से बहुत गहरी होती है माँ,
माँ की थाह को न कभी किसी ने पाया।
माँ तो बस माँ होती है,
ज़िक्र माँ का जेहन में सदा ही खुशियां लाया।।
माँ से बढ़कर नहीं जीवन में कोई भी छाया।।
माँ कर्म है,माँ धर्म है,है माँ ही शिक्षा और संस्कार,
रीत,रिवाज़,उमंग,उल्लास है माँ,है माँ ही आचार और व्यवहार।।
भटके जब जब इस भूलभुलैया में,
सदा सम्भाला माँ ने आकर।
ज़िन्दगी की आपाधापी में भूले हम माँ को,
पूछा नहीं हाल कभी पास उसके जाकर।।
वो फिर भी कुछ भी नहीं बोली, न गिला,न शिकवा,न शिकायत,
न गुस्सा कभी उसके चेहरे पर आया।
माँ से बढ़ कर नहीं जीवन में कोई भी छाया।।
आए भी गर गुस्सा उसको,बस हौले से रो देती है।
हम कितना ही दुखाएँ हिवड़ा उसका,
पर वो बस दुआएँ ही सदा हमें देती है।।
कर रचना माँ सी कृति की,खुद खुदा भी माँ को समझ न पाया।
भाग्यशाली है वो इंसा,
 जिसने मातप्रेम है पाया।।
बिन कहे ही मन की पाती,
एक दिन चुपके से माँ चली जाती है।
फिर हर किस्से और हर सपने में,
चुपके से माँ आती है।।
तन बेशक चला जाता है उसका,पर जेहन में वो अमर हो जाती है,
कहीं नहीं जाती वो रहती है हमारे हर अहसास में,
जैसे दीये में बाती है।।
किस घड़ी,किस सोच में रह होगा भगवान,
जब उसने माँ को होगा बनाया।
युग आएंगे,युग जाएंगे,नादान इंसा आज तलक ये समझ न पाया।।
माँ से बढ़ कर जीवन मे नहीं, कोई भी छाया।।
                स्नेहप्रेमचन्द

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