इतना भी न याद आया कर माँ, बाकी झूठा ही लगने लगे संसार,
एक तेरे न होने से,चमन से जैसे रूठ गई हो अदभुत सी बहार।।
चेतना में स्पंदन था,जिजीविषा का तेज चमकता था,मिलन को हिया रहता था बेकरार,
झट तैयार हो जाता था बैग माँ, तेरा होना ही नवजीवन का कर देता था संचार,
इतना भी याद न आया कर माँ, और तो झूठे ही लगने लगे रिश्तों के तार,
अब सब उधड़े उधड़े से लगते हैं,तुरपन से भी नहीं पाती हूँ सँवार।।
कई मर्तबा पैबन्द लगाए,कर इस्री,प्रेम की, रिश्तों से सलवटें भी हटाई,
पर बात बनी न पहले जैसी,हर अक्स में लगी ढूंढ़ने तेरी परछाई।।
सब लोग तो पहले जैसे ही हैं,पर जब तूं थी,तो उन्हें देखना,जानना,समझना भी न लगा ज़रूरी,
जब से गई है तूं ओ प्यारी माँ, पाटने पर भी नही पटती है दूरी।।
चेतना ही नही देती दस्तक अब ज़िन्दगी की चौखट पर,दहलीज़ से ही लौट जाती है।
यूँ लगता है जैसे हर शै,माँ तेरा ही नगमा गुनगुनाती है।।
इंद्रधनुष भी थी तूं, रंगोली भी थी, प्रेम ही था जीवन आधार।।
ज़िन्दगी का परिचय अनुभूतियों से कराने वाली,
हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध कराने वाली,
पंखों को परवाज़ दिलाने वाली,
शिक्षा को संस्कार का टीका लगाने वाली,
पर्व,उत्सव,उल्लास का जीवन मे महत्व बताने वाली,
अक्षरज्ञान अधिक न होने पर भी,ज़िन्दगी के सबसे महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाने वाली,
ममता के सुर,स्नेह की सरगम,अपनत्व के संगीत से अनहद नाद बजाने वाली,
बेशक नश्वर तन तो चला गया तेरा,पर अहसासों में सदा ही जीवित रहने वाली,
तूं याद तो तब आएगी न जब स्मृतियों से जाएगी,
सदा ही तो संग है मेरे।।
स्नेहप्रेमचन्द
....painfuller lines by the poet ...beautifully expressed genuine feelings for the mother who seems to be no more 😞
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