मैं न भूलूँगी,माँ, तेरा मुझे दहलीज़ तक विदा करके आना,
मैं न भूलूँगी माँ, मेरे आने पर तेरा कमल सा खिल जाना,
मैं न भूलूँगी माँ, तेरा हौले से मेरा हाथ दबा कर अपने कमरे में खींच कर ले जाना,
मैं न भूलूँगी माँ,
तेरा अलमारी खोल नए नए उपहार दिखाना,
मैं न भूलूँगी,माँ तेरा हर उत्सव को पूरे जोश,उत्सव,उल्लास से मनाना,
मैं न भूलूँगी माँ, तेरा हरियाली तीज पर पापड़,गुलगुले बनाना,
मैं न भूलूँगी माँ, दीवाली पर तेरा ईंटों के फर्श को बोरी से रगड़ कर लाल लाल चमकाना,
मैं न भूलूँगी तेरा बड़े प्रेम से चूल्हे तन्दूर पर भोजन बनाना,
तेरा बाजरे की खिचड़ी बनाना,बड़े प्रेम से सबको खिलाना,कर्म की ढपली आजीवन बजाना,
हमे बुलंदियों तक पहुंचाना, फर्श से अर्श के सपने दिखाना,पंखों को परवाज़ दिलाना,विषम हालातों में भी मन्ज़िल को पाना,सहजता से तेरा याराना,अवसाद विषाद से अलगाव,तेरा ताल मेल का वादय बजाना,फिर हौले से एक दिन चले जाना,
मैं सच में ही न भूलूँगी माँ।।
स्नेह प्रेमचन्द
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