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साँझ हुई वो जेहन में आई poem by snehpremchand

साँझ हुई वो जेहन में आई,
यादों ने लाँघ दहलीज़ दिल की,
दिल की ही चौखट खटखटाई।
साँझ हुई वो जेहन में आई,
जो पल गुजारे थे संग उसके,
हैं आज भी वे मेरी अनमोल धरोहर,
उनकी ही तो मैंने एफडी कराई।।
साँझ हुई वो जेहन में आई,
रूह का रूह से जुड़ा है नाता।
चित्त सुकून उसके आँचल में पाता।।
कभी गर्मी की कभी सर्दी की छुटियों का
रहता था मन के किसी कोने में इंतज़ार।
उसके बाद नही होता मन 
वहाँ जाने को बेकरार।।
बीते पल वो चली गई,
यादें कहीं भीतर हैं कसमसाई।
साँझ हुई वो जेहन में आई,
एक इसके न होने से कम हो गयी,
जैसे मेरे पीहर की रोशनाई।।
संग ही चला गया उसके,
वो ज़िद्द करना वो रूठना मनाना।
सहजता,सुकून,जिजीविषा ने भी,
कम कर दिया है घर के आँगन में आना।।
न उठती है कसक अब सीने में,
न झट से अब बैग होता है तैयार।
जब भी उदास होता है मन,
आ जाती है याद वो बारम्बार।।
बेहतरीन पल थे वे जीवन के,
जब ज़िन्दगी के सफर में था उसका साथ।
आज भी जेहन में हलचल मचा देता है,
उसका वो हौले से दबाना मेरा हाथ।।
वो पट खोल अलमारी के मुझे,
प्रेम से दिखाने उपहार।
और कहीं नही मिल सकता,
उसके जैसा अनमोल सा प्यार।।
जब मन हुम हुम करता है,
और हर मंज़र लगता है धुंधलाने।
एक गोला सा अटक जाता है कण्ठ में,
लगता है मन जब आवाज़ लगाने।।
खामोशी करने लगती है कोलाहल
मन ने मन की डोर बंधाई।।
और नही किसी मे दिखी कसक ऐसी,
जैसी उसमे हर पल पल पल थी नज़र आई।।
साँझ हुई वो जेहन में आई।।
नही भान था ममता की होती
है मधुर इतनी शहनाई,
आज भी कानो में अक्सर
लोरी उसकी देती है सुनाई।।
ऐसा नही कि वो थी जब कोई
समस्या नही आती थी।
आती थी जब कोई समस्या,
वो समाधान बन जाती थी।।
हाल ए दिल अब तो 
बस दिल को ही
बताते हैं हम।
उसके तो ज़िक्र से ही,
नयन हो जाते हैं नम।।
सोच सोच होती है हैरानी,
किस माटी से खुदा ने थी वो बनाई।
साँझ हुई वी जेहन में आई।।
      स्नेहप्रेमचन्द

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