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utimate mother in law. poem by snehpremchand

हँसते हँसते सौंप देती है सास बहू को
अपने जीवन का अनमोल खज़ाना।
वो ऐसी है,वो वैसी है,
देखो अनर्गल सी बातें न बनाना।।
           थोड़ा डाँट भी दे तो,ये हक है उसका,
अहम की कर दीवार खड़ी,
अपना मुँह बेबात न फुलाना।।
उसकी खुशी की ही तो खुशी हो तुम,
        हो उसके लिए सबसे अनमोल नजराना।।
वो भी तुम्हारी ही तरह,
 इस घर की दहलीज लांघ,
चावल के लोटे को गिरा,बड़े चाव से आई थी।
बस वक़्त बदला है,पात्र बदले हैं,
पर किरदार का तो है वही पैमाना।।
कभी कह भी दे गर कुछ तुमको
       देखो बात का बतंगड़ न बनाना।
सबसे अधिक शुभचिंतक है वो तुम्हारी
बेशक जननी की तरह न आता हो उसे दर्शाना।।
           स्नेहप्रेमचंद




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