एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते और हरी भरी शाखाएँ,
विविधता है बेशक बाहरी स्वरूपों में हमारे,पर मन की एकता की मिलती हैं राहें।।
एक धरा है,एक गगन है,है एक ही चाँद और एक ही आदित्य,
प्रकृति ने किया न कोई भी भेद भाव,विविधता से भरा है हमारा साहित्य।।
बोली,भाषा,रहन सहन और खान पान भले ही जुदा जुदा है हमारा,
पर वतन अपना हम सब को है उतना ही प्यारा।।
एक थे,एक हैं,एक ही रहेंगें, यही आरज़ू हम सब चाहें।
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