माँ रूप में सबसे सुंदर नारी
का अदभुत किरदार।
हमारे स्नेह और सम्मान की
है नारी सदा से हकदार।।
उसकी सोच में रहते हैं हम,
हम से ही शुरू,
हम पर ही खत्म होता नारी का संसार।
बेशक हम करें मनमानी अपनी पर वो,
देती ही रहती है दुआओं का उपहार।।
खुदा का पर्याय है माँ जग में,
हों हम ईश्वर के शुक्रगुज़ार।
सुर सरगम संगीत है माँ,
लय ताल और अनहद नाद है माँ,
शिक्षा और संस्कार है माँ,
जीवन का आधार है माँ
माँ आदित्य है जीवन का,
इंदु की शीतल ज्योत्स्ना भी है,
सुहानी भोर का मीठा कलरव,
ढलती साँझ का नगमा है,
चेतना भी है माँ,स्पंदन भी है माँ,
कोहेनूर है माँ कुंदन है माँ,
आस है माँ विश्वास है माँ,
जीवन मे सबसे खास है माँ,
सहजता का पर्याय है माँ,
जीवन मे सबसे अच्छी राय है माँ,
हर समस्या का समाधान है माँ,
स्नेह का प्यारा परिधान है माँ,
जिजीविषा है माँ,चेतना है माँ,
पर्व उत्सव उल्लास है माँ,
प्रेम पतंग है जग तो
अनुराग की डोर है माँ,
माँ वो मधुर मुरली है
जो सदैव मीठी धुन बजाती है,
माँ दुआओं की लोरी
पल पल हर पल सुनाती है,
सच मे माँ जैसा कोई सन्त नही।।
स्नेहप्रेमचंद
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