एक ही डोर से बंधा हुआ है,
नारी और प्रकृति का नाता।
उपजाना,लहल्हाना और सहलाना,
दोनों को समान रूप से है आता।।
बीजारोपण,सिंचाई और उतपति ही,
है प्रकृति के अदभुत और सुंदर काम।
जीवन को तृप्त कर गूढ़ आलिंगन से
करती सिंदूरी जीवन की हरेक शाम।।
यही अनुभूतियाँ प्रकृति की नारी में
भी समाई हैं।
एक सी दोनों की सम्वेदनाएं,
एक सी भाव भंगिमाएँ पाई हैं।।
प्रकृति की सृजन क्षमता का,
मूर्त रूप है ये सुंदर संसार।
इंसानी दुनिया मे प्रेम स्पंदन का,
स्त्री व्यवहार ही होता आधार।।
जग की कल्पना बिन नारी के,
ये विचार भी सोचा नही जाता।
एक ही डोर से बँधा हुआ है,
नारी और प्रकृति का नाता।।
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