पृष्ठभूमि में गयी प्रकृति,आज सन्मुख आई है।
खग विहग सब शांत हैं,प्रकृति सच में मुस्काई है।
किस बात की आपाधापी में भाग रहा था मूर्ख इंसान।
क्यों खा रहा था निरीह प्राणी,किया प्रकृति ने दंड प्रावधान।।
"जीयो और जीने दो" ईश्वरीय कार्यों में न बनो व्यवधान।।
चार दिनों की इस ज़िन्दगी में,प्रेम प्रेत का पहनों परिधान।।
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