Skip to main content

लॉक डाउन poem by snehpremchand

उसी समय पर आफ़ताब की आरुषि धरा चरणों को छूती है।
उसी समय पर इंदु ज्योत्स्ना, निज शीतलता से,उद्विग्न मनों को सुकून सा देती है।।
वही पवन के ठंडे झोंके,
वही अनन्त गगन में जुगनू से तारों की छटा निराली।।
वही प्रकृति की है नयनाभिराम हरियाली,
वही तरुवर पर कूकती कोई कोयल है काली।
वही आँगन में छोटी सी चिरैया चहक चहक सी जाती है।
वही ओढ़ धरा धानी सी चुनरिया,
पहन पीत घाघरा घूमर नाच नचाती है।
इनमे से नही हुआ लॉक डाउन किसी का,
हमे ये क्यों समझ नही आती है???
रचनात्मकता के भी खुले खड्ग हैं,
बस मन से कहो,
दहलीज़ पर इसके दस्तक तो दे।
ये रहती है सदा ही ततपर,
बस सृजन के इन अग्निकुंड में,
प्रयासों की कोई आहुति तो दे।।
सृजन की नही कोई पाबंदी
इसे विहंगमता की सहेली बनने दो।।
प्रेम पर भी नही लगी कोई बंदिशें,
इसे अनन्त सिंधु सा बहने तो दो।
देने से ही लौट कर आता है ये,
धर्म,सरहद,जाति से निकलकर
 खुली फिजां में रहने तो दो।।
अध्ययन पर नहीं कोई पाबन्दी
इसे खुली सोच के विविध आयामो से 
मिलने तो दो।।
दीया ज्ञान का जलने तो दो।
अज्ञान तमस हरने तो दो।।
करुणा पर नहीं कोई पाबंदी,
उसे हर मन मन्दिर में रहने तो दो।।
प्रार्थना पर नही कोई बंदिशें,
हर मन को अपनी कहने तो दो।।
ख्वाबों पर नहीं कोई पाबंदी,
मुलाकात हकीकत से करने तो दो।।
संकल्प पर नही कोई पाबंदी,
वरण सफलता का उसे करने तो दो।
बुद्धि पर नहीं कोई पाबंदी,
उसे तर्कों के काफिले संग,
सफर तय करने तो दो।।
चेतना पर नहीं कोई पाबन्दी
स्पंदन के गलियारे में उसे महकने तो दो।।
नही पाबन्दी है मन पर कोई,
खुद की खुद से मुलाकात होने तो दो।।
जाने कबसे रूबरू नही हुए अपने, आपसे ही,
एक नया परिचय अब होने तो दो।।
नहीं लगी बंदिशें परिंदों पर कोई,
उन्मुक्त उन्हें अनन्त गगन में उड़ने तो दो।।
पंखों को परवाज़ मिले, 
हर मधुर कण्ठ को आवाज़ मिले,
 गुलशन गुलशन सुमन खिले,
नहीं पाबन्दी कोई आत्ममंथन पर,
आत्मविचरणं पर,
मन की सरिता को बहने तो दो।।
अनुभूति पर नही कोई पाबंदी,
बस उसे इज़्हारों से आलिंगनबद्ध होने तो दो।।
कल्पनाशक्ति पर नही कोई पाबंदी,
पूरे ब्रह्मांड में इसको रहने तो दो।।
भावों पर नही कोई पाबंदी,
इसे शब्दों को सुहागिन करने दो।।
सुर, संगीत,लय, सरगम को,
अपने गीत को गाने तो दो।।
कला,साहित्य,संगीत का नही कोई लॉक डाउन,
इस त्रिवेणी को निर्बाध गति से बहने तो दो।।
मनन की गंगा से कर्म के गंगासागर तक
  सु परिणामों की धारा को बहने तो दो।।
सहजता सुकून पर नही कोई पाबन्दी,इसे अपने जीवन मे रहने तो दो।।
नही पाबन्दी कोई माँ के आँचल की,
बस फिर से बच्चा बन पहलू में उसके जाने तो दो।।
ज़ुस्तज़ू हो मन मे गर कोई,लबों को खुल कर कहने तो दो।।

            स्नेहप्रेमचंद

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...

बुआ भतीजी