माँ क्या लिखूँ तेरे बारे में,
तूने तो मुझे ही लिख डाला।
सीमित उपलब्ध संसाधनों में,
कैसे ममता से था तूने हमे पाला।।
जीवन का अमृत पिला गई हमको,
खुद पी गयी कष्टों की हाला।
एक बात आती है समझ माँ मुझको,
तूँ जीवन की सबसे बेहतर पाठशाला।
कर्म की कावड़ में जल भर मेहनत का,
माँ तूने हम सब को आकंठ तृप्त कराया।
क्या भूलूँ क्या याद करूँ मैं,
सबसे शीतल था माँ तेरा साया।।
माँ तेरे होने से सतत बजती थी ममता शहनाई
है कौन सी ऐसी भोर साँझ,
न जब तूँ हो मुझे याद आई।।
मेरी पतंग की माँ तूँ ही डोर थी,
उड़ने को,तूने अनन्त गगन दे डाला।
कभी खींचा भी,कभी ढील भी दी,
पर कटने से तूने सदा संभाला।।
माँ क्या लिखूं तेरे बारे में,
तूने तो मुझे ही लिख डाला।।
आज भी मन के एक कोने में तूँ,
बड़ी शान से रहती है।
वो तेरे होने की अनुभूति ही,
मानो सुमन में महक सी रहती है।।
सोच सोच होती है हैरानी,
ये तूने कैसे सब माँ कर डाला??
हमे तो अमृत पिला गयी,
पर खुद पी गयी कष्टों की हाला।।
मेरी लेखनी भी माँ तुझको,
करती है शत शत प्रणाम।
कैसे भाव खेलते शब्दों से,
गर कराया न होता तूने अक्षरज्ञान।।
मेरी हर रचना समर्पित माँ तुझको,
तुझे पाकर हुई मैं सच धनवान।
एक अक्षर के छोटे से शब्द में,
सिमटा हुआ है पूरा जहान।।
न कोई था,न कोई है,न कोई होगा,
माँ से बढ़ कर कभी महान।।
पग पग पर पड़ी ज़रूरत तेरी,
तूने बड़े प्रेम से हमको संभाला।
और अधिक तो क्या कहना,
तूने दे दिया हमे निज मुख का निवाला।
माँ क्या लिखूं तेरे बारे में,
तूने तो मुखे ही लिख डाला।
न शब्दों में वो ताकत है,
न भावों में वो इज़हार है,
न लेखनी में इतनी स्याही है।
न ही इतने पन्नों की कोई किताब है।
जो सही सही लिख पाऊँ तेरे बारे में,
माँ ऐसाआज तलक बना ही नही कोई हिसाब है।
तेरा अस्तित्व तेरा व्यक्तित्व माँ सच मे
ही तीनो लोकों में बड़ा निराला।
अतिशयोक्ति नही ये शाश्वत सत्य है
तेरे नाम का मैंने पी लिया है प्याला।।
माँ क्या लिखूं तेरे बारे में
तूने तो मुझे ही लिख डाला।।
स्नेहप्रेमचंद
...what a tribute to the mother! So genuine and so true 👏🏻👏🏻👏🏻
ReplyDelete...what a tribute to the mother! So genuine and so true 👏🏻👏🏻👏🏻
ReplyDeleteजी शुक्रिया
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