Skip to main content

क्या लिखूं तेरे बारे में poem by snehpremchand

माँ क्या लिखूँ तेरे बारे में,
तूने तो मुझे ही लिख डाला।
सीमित उपलब्ध संसाधनों में,
कैसे ममता से था तूने हमे पाला।।
जीवन का अमृत पिला गई हमको,
खुद पी गयी कष्टों की हाला।
एक बात आती है समझ माँ मुझको,
तूँ जीवन की सबसे बेहतर पाठशाला।
कर्म की कावड़ में जल भर मेहनत का,
माँ तूने हम सब को आकंठ तृप्त कराया।
क्या भूलूँ क्या याद करूँ मैं,
सबसे शीतल था माँ तेरा साया।।
माँ तेरे होने से सतत बजती थी ममता शहनाई
है कौन सी ऐसी भोर साँझ,
न जब तूँ हो मुझे याद आई।।
मेरी पतंग की माँ तूँ ही डोर थी,
उड़ने को,तूने अनन्त गगन दे डाला।
कभी खींचा भी,कभी ढील भी दी,
पर कटने से तूने सदा संभाला।।
माँ क्या लिखूं तेरे बारे में,
तूने तो मुझे ही लिख डाला।।
आज भी मन के एक कोने में तूँ,
बड़ी शान से रहती है।
वो तेरे होने की अनुभूति ही, 
मानो सुमन में महक सी रहती है।।
सोच सोच होती है हैरानी,
ये तूने कैसे सब माँ कर डाला??
हमे तो अमृत पिला गयी, 
पर खुद पी गयी कष्टों की हाला।।
मेरी लेखनी भी माँ तुझको,
करती है शत शत प्रणाम।
कैसे भाव खेलते शब्दों से,
गर कराया न होता तूने अक्षरज्ञान।।
मेरी हर रचना समर्पित माँ तुझको,
तुझे पाकर हुई मैं सच धनवान।
एक अक्षर के छोटे से शब्द में,
सिमटा हुआ है पूरा जहान।।
न कोई था,न कोई है,न कोई होगा,
माँ से बढ़ कर कभी महान।।
पग पग पर पड़ी ज़रूरत तेरी,
तूने बड़े प्रेम से हमको संभाला।
और अधिक तो क्या कहना,
तूने दे दिया हमे निज मुख का निवाला।
माँ क्या लिखूं तेरे बारे में,
तूने तो मुखे ही लिख डाला।
न शब्दों में वो ताकत है,
न भावों में वो इज़हार है,
न लेखनी में इतनी स्याही है।
न ही इतने पन्नों की कोई किताब है।
जो सही सही लिख पाऊँ तेरे बारे में,
माँ ऐसाआज तलक बना ही नही कोई हिसाब है।
तेरा अस्तित्व तेरा व्यक्तित्व माँ सच मे
ही तीनो लोकों में बड़ा निराला।
अतिशयोक्ति नही ये शाश्वत सत्य है
तेरे नाम का मैंने पी लिया है प्याला।।
माँ क्या लिखूं तेरे बारे में
तूने तो मुझे ही लिख डाला।।
     स्नेहप्रेमचंद

Comments

  1. ...what a tribute to the mother! So genuine and so true 👏🏻👏🏻👏🏻

    ReplyDelete
  2. ...what a tribute to the mother! So genuine and so true 👏🏻👏🏻👏🏻

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...

बुआ भतीजी