मैंने भगवान को तो नही देखा,
पर धरा पर मां है ईश्वर का ही अवतार।
माँ जीवन का अनमोल खज़ाना,
माँ से ही सुंदर ये विहंगम संसार।।
क्या क्या उपमाओं से अलंकृत करूँ मैं माँ को,
माँ जीवन का सबसे सुंदर श्रृंगार।।
ज़िन्दगी की पाठशाला की पहली शिक्षिका,
निभाया तूने गज़ब हर किरदार।।
मैंने भगवान को तो नही देखा,
पर धरा पर मां ईश्वर का ही अवतार।
माँ वो किताब है जीवन की,
जिसके हर अल्फ़ाज़ में बस प्यार ही प्यार।।
कोई चिंता नही रहती उसके रहते,
माँ करती सब सपने साकार।
न कोई था,न कोई है,न कोई होगा,
माँ से बेहतर और नायाब सा शिल्पकार।।
हमारे पंखों को परवाज़ देने वाली मां,
निभाती जाने कितने ही किरदार।
ज़िन्दगी के कैनवास में रंग भरने वाली,
माँ सबसे प्यारी सी चित्रकार।।
मुँह सा भर जाता है माँ के सम्बोधन से,
माँ दूर कर देती मन के समस्त विकार।
हर संज्ञा, सर्वनाम,विशेषण का बोध कराने वाली
की हो सर्वत्र सर्वदा जयजयकार।।
ज़िन्दगी की तपिश में हर थकान उतर जाए,
जो जग में एक बस माँ का आँचल मिल जाए।।
क्या क्या कहूँ माँ तुझ को,माँ तो वो कमल है
जो हर कीचड़ में भी खिल जाए।।
माँ के लिए उपमाओं का सच मे कोई अंत नहीँ
ज़्यादा तो मुझे पता नहीं, पर माँ जैसा कोई संत नहीं।।
माँ है बस प्रेम और सम्मान की।पूरी हकदार।
भगवान को तो मैंने देखा नहीं, पर धरा पर
है माँ ईश्वर का ही अवतार।।
थोड़ा ध्यान से सोचो,जग में बस माँ ही तो
होती है ऐसी,जो रूठे को झट मना लेती है।
कितना भी रुलाएँ कितना भी सताएं,
वो सिर्फ और सिर्फ दुआ ही देती है।।
माँ प्रतिबिम्ब हमारे व्यक्तित्व का इतना अदभुत
सच मे माँ जीवन का आधार।
गीत, प्रीत, रीत,रिवाज़, पर्व, उत्सव, उल्लास है माँ
है माँ ही जीवन मे शिक्षा और संस्कार।।
कह दिया,मां रूप में मैंने देखा है भगवान को
ये सत्य करती हूं स्वीकार।।
पर उसके लिए तो हम ही हैं उसका पूरा संसार।।
स्नेहप्रेमचंद
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