मेहनत की सड़क पर सतत कर्म का पुल बनाता है मज़दूर,
मेहनत के मंदिर में सदा कर्म की घण्टियाँ बजाता है मज़दूर,
कर्म की कावड़ में परिश्रम का सतत जल भरता है मज़दूर,
जिन महलों में हम चैन से जीते हैं,
उनको अपने पसीने की बूंदों से निर्मित करता है मज़दूर,
देख कर भी जिसको अनदेखा कर देते हैं हम,
सच मे वो होता है मज़दूर,
शाम होने तक काम करते करते थक कर जो हो जाता है चूर,
Snehpremchand
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