एक बार फिर आ जाओ ना माधव,
जाने कितने ही पार्थ कर रहे पुकार।
धर्म स्थापना और जनरक्षा हेतु,
लिया बार बार तूने अवतार।।
द्रौपदी की रक्षा हेतु भी आप
तत्क्षण ही तो दौड़े आये थे।
ज्ञान दिया था धर्मक्षेत्र में गीता का,
जब पार्थ रणक्षेत्र में घबराए थे।।
अब फिर घबराए हैं बालक तेरे,
संशित सशंकित हृदय हैं बेशुमार।।
एक बार फिर आ जाओ ना माधव,
जाने कितने ही पार्थ कर रहे पुकार।।
वैश्विक महामारी के बादल सर्वत्र ही मंडराए हैं।
पर जंग जारी है साझा सी,सब एकजुट हो आए हैं।।
बस सबको सन्मति दे देना कान्हा,
ज़िन्दगी मौत से न जाए हार।
एक तेरा भरोसा है बड़ा भारी,
आस्था का होता तुझमे दीदार।
एक बार फिर आ जाओ माधव,
जाने कितने ही पार्थ कर रहे पुकार।।
सुन रहे हो न तालियों,घण्टियों और थालियों की झंकार???
आस का दीया भी जलाया है सबने,
अब हरो तमस कर दो आलौकित ये संसार।
एक बार फिर आ जाओ ना माधव,
जाने कितने ही पार्थ कर रहे पुकार।।
न शोर कोई सरहद पर है,
न धर्म जाति वर्ग भेद के नगाड़े भर रहे हुंकार।
आज खड़े हैं साथ जो सब,
हुआ आधा कष्टों का भंडार।।
दिशा दिखा दे, राह सुझा दे,
करदे न कोई ऐसा चमत्कार।
सहजता न दामन चुराए चित्त से,
हो चेतना का स्पंदन बारम्बार।।
शायद हम सब प्रकृति के हैं बहुत ही बड़े गुनाहगार।
जाने कब से करते आये हैं मदिरापान और मांसाहार।।
जाने कितनी ही मधुशालाओ में छलकती है कब कब हाला।
जाने कितने ही होते हैं चीर हरण,जाने कितने उदरों को नहीं मिलता निवाला।।
जाने कितनी ही मासूम सी कलियों को नोचा कुचला जाता है।
जाने कितने बचपन होंगे ऐसे,जहां शोषण भोगा जाता है।।
तूँ तो सब जानता है माखनचोर,आज और निभा ले एक और किरदार।
एक तूँ ही तो है जो होने न दे दामन किसी का दागदार।।
गुनाह की सज़ा तो मिलती ही है,पर तेरी क्षमा के भी हम हैं हकदार।
तेरी शक्ति सब जान गए हैं मोहन, ब्रह्मांड,परदेस, देस,समाज,परिवार।।
अहसास ए ज़ज़्बात बहुत हैं,प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।
जान गया है जग सारा,हट जाए सर्वत्र ये नफरत की दीवार।।
एक बार फिर आ जाओ माधव,जाने कितने ही पार्थ कर रहे पुकार।
धीर बंधाओ,शांति दिलाओ,रूह कोई न करे अब चीत्कार।।
जान है तो है जहान, समझा दे, सबको बना दे समझदार।
रहेगी ज़िन्दगी तो फिर मिलेंगे,हों नष्ट सभी आदि व्याधि और विकार।।
एक तूँ ही आशा की किरण है तूँ ही तो जीवन और मरण है,एक तूँ ही मोहन तारणहार।
सब धुंध कुहासे हट जाएंगे,हर धुँधला मंज़र हो जाएगा चमकदार।।
एक बार फिर आ जाओ माधव,जाने कितने ही पार्थ कर रहे पुकार।
तेरी ओर टकटकी लगाए देख रहा सारा संसार।।
स्नेहप्रेमचंद
माधव हमारे अंदर ही है बस इसको बाहर निकाल लो बहुत सारी समस्याएं अपने आप ही समाप्त हो जाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद आप की प्रतिक्रिया हेतु
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