धीरे धीरे मैं बदलने लगी हूँ,
गहरी साँझ सी ढलने लगी हूँ।
होने लगा है परिचय मेरा खुद से ही,
एक नए व्यक्तित्व में पिंघलने लगी हूँ।
अब नहीं होते कोई गिले शिकवे किसी से,
समझौतों के कलमे पढ़ने लगी हूँ।
खुद ही रूठने खुद ही मन ने लगी हूँ।
उफ़नती नदिया सी बहती रहती थी
जो कल कल मैं,
अब शांत सागर सी सिमटने लगी हूँ।
छोटी छोटी सी बात माँ कानों में कहने वाली, अब बड़े बड़े मसलों पर भी सब ठीक है,
बड़ी सहजता से असत्य कहने लगी हूँ।
मैं धीरे धीरे बदलने लगी हूँ।
बात बात पर मुखालफत करने वाली मैं,
हर बात पर हामी भरने लगी हूँ।
अक्षर ज्ञान पाकर खुद को
समझती थी जो जहीन मैं,
अब ज़िन्दगी की पाठशाला के
पढ़ पाठ,ध्वस्त परस्त सी होने लगी हूँ।
मैं धीरे धीरे बदलने लगी हूँ।।
कोई चिंता न छूती थी चित्त को कभी मेंंरे,
अब लम्हा दर लम्हा चिंतन से,
रोज़ ही रूबरू होने लगी हूँ।
निर्धारित पाठयक्रम रटने वाली सी मैं,
साहित्य के आदित्य से दमकने लगी हूँ।
बाहर घूमने को तवज्जो देने वाली,
मन के गलियारों में विचरण करने लगी हूँ।
जमा घटा में उलझने वाली सी मैं,
हिंदी की कविता सी बहने लगी हूँ।
मैं धीरे धीरे बदलने लगी हूँ।
कभी भी कुछ भी मांगने वाली मैं,
कहाँ तक हैं अधिकारों की सरहदें,
भली भांति जानने लगी हूँ।
कभी भी,कुछ भी,कहने वाली मैं,
अल्फ़ाज़ों पर ताला लगाने लगी हूँ।
भाव कहीं बह न जाएं नयनों के रास्ते,
अक्सर नज़रें चुराने लगी हूँ।
छोटी सी खुशी भी दिखाती थी ज़माने को,
अब हर दर्द अपना छिपाने लगी हूँ।
अब ख्वाइशें भी नहीं तड़ फाती मुझे,
हर हालात में शांति बरतने लगी हूँ।
धीरे धीरे मैं बदलने लगी हूँ।
अब नहीं कहती, क्या अच्छा लगता है,क्या बुरा
जो जैसा है उसे ही भाग्य समझने लगी हूँ।
परिवार की खुशी में ही है खुशी मेरी,
अब मैं बखूबी समझने लगी हूँ।
अपने ख्वाब छोड़ कर,
सपने औरों के बुनने लगी हूँ।
दूजे की खुशी में ही अब मैं,
खुशी अपनी समझने लगी हूँ।
मैं धीरे धीरे बदलने लगी हूँ।।
क़फ़स में कैद परिंदे सी मैं अब
अनन्त गगन में उड़ने लगी हूँ।।
आज़माइशें भी रही,नेहमतें भी रही,
ज़िन्दगी को मुकम्मल समझने लगी हूँ।
खामोशी की भी होती जुबान है,
बिन कहे ही मन की कहने लगी हूँ।
मैं धीरे धीरे बदलने लगी हूँ।
खैर ख्वाह हो या न हो कोई मेरा,
खुद को खुद का खैर ख्वाह समझने लगी हूँ।।
अब कभी नहीं करती इसरार कोई
अहसास ए ज़िम्मेदारी बरतने लगी हूँ।
मैं धीरे धीरे बदलने लगी हूँ।।
बिन सोचे समझे कुछ भी कर देती थी मैं,
अब खौफ ए खुदा से,
सहमने लगी हूँ।।
स्नेहप्रेमचंद
क़फ़स---पिंजरा
इसरार---ज़िद्द करना
खैर ख्वाह---शुभचिंतक
मुक्कमल---सम्पूर्ण
आज़माइशें---परीक्षाएं
खौफ ए खुदा---खुदा का डर
मुखालफत---विरोध
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