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ऐसे ही तो हैं thought by sneh premchand

नर में नारायण जैसा,
ग्रंथों में रामायण जैसा,
हीरों में कोहेनूर जैसा,
हाला में सरूर जैसा,
सीपमुख में मोती जैसा,
नयनों में ज्योति जैसा,
गगन में आदित्य जैसा,
पढ़ने में साहित्य जैसा,
पंखों में परवाज़ जैसा
कंठ में आवाज़ जैसा,
संगीत में सॉज जैसा,
नारी में लाज जैसा,
इंदु में शीतलता जैसा,
नीर में तरलता जैसा,
सुमन में महक जैसा,
चिड़िया में चहक जैसा,
प्रकृति में हरियाली जैसा,
त्यौहारों में दीवाली जैसा,
गन्ने में मिठास जैसा,
दीये में प्रकाश जैसा,
आम में अमराई जैसा,
सागर में गहराई जैसा,
ज्ञान में गीता जैसा,
मिथिला में सीता जैसा,
मन्दिर में मूरत जैसा,
प्रतिबिम्ब में सूरत जैसा,
हृदय में धड़कन जैसा,
गीत में सरगम जैसा,
सुरों में ताल जैसा,
भावों में प्रेम जैसा,
महाभारत में माधव जैसा,
मानस में राघव जैसा,
माँ में अनुराग जैसा,
योगी में विराग जैसा,
चेतना में स्पंदन जैसा,
प्रार्थना में वंदन जैसा,
प्रतिबद्धता में प्रयास जैसा,
प्रगति में विकास जैसा,
किताब में अल्फ़ाज़ जैसा,
परंपरा में रिवाज़ जैसा,
संकल्प में हनुमान जैसा,
संयम में श्री राम जैसा,
मन्त्रों में गायित्री जैसा,
सत में सावित्री जैसा,
बचपन मे मासूमियत जैसा,
आध्यात्म में रूहानियत जैसा,
तप में त्याग जैसा,
प्रसून में पराग जैसा,
धरा में धीरज जैसा,
पुष्पों में नीरज जैसा।।
               स्नेहप्रेमचन्द

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

बुआ भतीजी

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...