नारी तन के भूगोल को जानने की बजाय नारी मनोविज्ञान को समझना ज़्यादा ज़रूरी है।दूसरे शब्दों में, उसकी बायोलॉजी जानो या न जानो,कतई ज़रूरी नहीं और उससे कैमेस्ट्री बिठाने के लिए भी उसके इतिहास को जानना ज़रूरी नहीं, मनोविज्ञान को जानना ज़रूरी है।उसे किसी प्रकार की पोलिटिकल साइंस में कोई रुचि नहीं होती,उसके हिवड़े के संगीत को सुनकर तो देखो,कुदरत की इस नायाब रचना से मधुर कोई सुर,नगमा,ताल न लगेगी।कभी घर में, कभी कार्यक्षेत्र में,कभी रिश्ते नातों में विविध किरदार निभाते हुए उसके नर्तन की कदम ताल में किसी तबले की थाप के अनहद नाद की अनुभूति तो करके देखो.
उसके क्रियाकलापों का गणित लगाने की बजाय उसके ह्रदय की स्वरलहरियां सुनना ज़्यादा ज़रूरी है,उसके तन की बजाय मन के गलियारों में विचरण करना गांधारी की आंखों पर बंधी पट्टी खोलने जैसा होगा।।
विज्ञान की तरह किसी परिकल्पना को नारी के सन्दर्भ में सिद्ध करने का कोई औचित्य नहीं,हिंदी की कविता की तरह उसे बहने दो,उसके मन की सरहदों पर मात्र प्रेम का पुल ही बन सकता है,जबरन बनाया गया किसी भी प्रकार के प्रतिबंधों का पुल तो सागर पर बांध बनाने जैसा असंभव कार्य होगा।।
स्नेहप्रेमचंद
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