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हलाहल। thought by sneh premchand

पी लो फिर से हलाहल, भोले, घ नन घ नन।।
हर लो पीड़ा जग की, फिर से, स नन स नन।।
कर रहा प्रार्थना जग पूरा,करे नमन, नमन।।
सत्यम,शिवम,सुंदरम,करो पीड़ा का हनन हनन।।
हो सुख कर्ता और दुख हर्ता,करो दुख का हरण हरण।।
स्नेहप्रेमचंद


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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

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