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खैरख्वाह thought by snehpremchand

जिन्हें हमारा खैरख्वाह होना चाहिए वही लोग हमें दुख देने की फेरहिस्त में सबसे ऊपर होते हैं,शायद विडंबना की यही सही मायनों में सटीक परिभाषा है।अहसास ए ज़िम्मेदारी उन्हें छू कर भी नहीं जाता।या तो उनकी तरबीयत में कोई कमी रह जाती है,या उनकी अहमकाना सोच इसका कारण होती है।अहसास ए जुर्म हो तो खौफ ए खुदा भी हो।नेकी का आफ़ताब उनके जेहन में कभी नही चमकता।दूसरों के आब ए  चश्म से भी उन्हें कोई सरोकार नही होता।वे हमारी हर बात का समर्थन करें, ज़रूरी नहीं, पर हर हर बात की मुखालफत करें,ये तो कतई ज़रूरी नहीं।।
        स्नेहप्रेमचंद
आब ए चश्म---आंसू
मुखालफत---विरोध

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

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