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लेखन। thought by snehpremchand

लेखन सीखना नहीं पड़ता,हां शब्द ज्ञान ज़रूरी है,सुंदर सार्थक अल्फ़ाज़ों के लिए।
अहसासों की कोई किताब नहीं होती।ज़िन्दगी के अनुभवों की संतान हैं ये,कल्पनाओं की कोई सरहद नही होती,
अनन्त गगन सा विस्तार अपने आँचल में समेटे है ये,हालातों के प्रति हमारी सम्वेदनाएं ही लेखन का आधार है।जब किसी विशेष परिस्थिति में खुद को रख कर देखो,सब समझ आ जाता है।हमारी समझ,सम्वेदना,अनुभव,सोच खुद ही अल्फ़ाज़ों और भावों का चयन कर लेती हैं,हमें ज़्यादा प्रयास भी नहीं करना पड़ता।सहज,सरल,स्वभाविक भावों की सरिता में कविता की नाव सुंदर अल्फ़ाज़ों की पतवार संग
निर्बाध गति से बहने लगती है।यह स्वानुभूति पर आधारित सत्य है।लेखन वह भाषा है जो बोल कर नही लिख कर मन की बात कहती है।लेखन हमारी भावनाओं का वो प्रतिबिम्ब है,जो मन की हर तस्वीर को अंकित कर देता है।लेखन हृदय सागर में वो लहर है जो सारे ज़ज़्बातों को बहा कर बाहर ले आता है।लेखन वह सुर है जो सच्चे भावों की संगीत सरिता सदा बहाता है।लेखन अनन्त ब्रह्मांड में गूंजता वो अनहद नाद है जो हमारी सोच के पंखों को परवाज़ दिलाता है,तन का परिचय रूह से करवाता है।हमारी सोच के आयाम बदल देता है,सोच से ही कर्म और कर्म से परिणाम  सुनिश्चित होते हैं।लेखन तो वे बादल हैं जो ज्ञान की बरखा करते हैं,वो दीया है जो भावों की अखण्ड ज्योत जलाता है।।
                  स्नेहप्रेमचंद

 

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

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