जब भी कहीं, कोई भी, बचपन मुस्कुराता है,
मानव का अध्यात्म से परिचय करवाता है।।
जब भी कहीं,कोई भी,बचपन खिलखिलाता है,
सहजता के पुष्प जिजीविषा के चमन में
बखूबी खिलाता है।।
जब भी कहीं,कोई भी,बचपन
ज्ञान की चौखट पर दस्तक दे,
पूरे मन से खटखटाता है,
जाने कितनी ही असीमित सम्भावनाओं को
आगोश में भर लाता है।।
जब भी कहीं,कोई भी, बचपन मायूस और उदास हो कुम्हलाता है,
फिजां में भी घुल जाती है घुटन और उदासी,
फिर कहीं कोई सुनामी,बाढ़, तूफान या महामारी लाता है।।
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