अल्फ़ाज़ों का आईना भावों का प्रतिबिंब शत प्रतिशत दिखा ही देगा,ज़रूरी तो नहीं।अनुभूति की गहराई इज़हार के इंचीटेप से मापी ही नहीं जा सकती।। इज़हार ए अहसास करो भी तो दूसरे को समझ आ जाए, ये भी कतई ज़रूरी नहीं।सबकी सोच,प्राथमिकताएं,अनुभव सब अलग अलग हैं,यही कारण है कई बार जो लेखक लिखता है पाठक वही नहीं पढ़ पाता। जैसे सबके चश्मे का नम्बर अलग है ऐसे ही सबकी सोच का दायरा भी अलग है।कोई तो चींटी भी नहीं मार सकता,किसी को मांसाहार करने से भी कोई परहेज नहीं।।
कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक
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