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हानि thought by snehpremchand

इस जग को अधिक हानि बुरे लोगों से नहीं होती,बल्कि कुछ बुरा होने पर अच्छे लोगों की खामोशी के कारण होता है।द्रौपदी चीरहरण के समय समस्त सभासद,उसके पांचों पति पांडव,गुरु द्रोण,पितामह भीष्म,विदुर,महाराज धृतराष्ट्र सब मौन थे।अन्याय की चक्की चलती रही,क्रिया सही प्रतिक्रिया का इन्तज़ार करती रही।अन्याय अट्हास करता रहा, क्रूरता मंद मंद मुस्कुराती रही,बेबसी कराहती रही,न्याय ने भी गांधारी की तरह अपनी आंखों पर पट्टी बांध रखी थी, राजवंश की मर्यादा सिसकती रही,घुटती रही,रोती रही,बिलखती रही।आरजुएँ दम तोड़ती रही,अनीति खिल खिलाती रही,क्या पितामह भीष्म की प्रतिज्ञा किसी की बेबसी,रुसवाई,
 अस्मत और मान सम्मान से भी बढ़ कर थी।कदापि नहीं।उस सिसकते इतिहास के पदचाप आज वर्तमान में भी सुनाई पड़ते हैं।
द्रौपदी को न्याय मयस्सर न हुआ,दुर्भाग्य जाग रहा था,सौभाग्य सो रहा था,गलत कर्म अपने चरम पर थे।जिल्लत गुर्रा रही थी,खौफ ए खुदा नदारद था,दुर्योधन की अहमकाना सोच  अंकुरित,पल्लवित और पुष्पित हो रही थी।पूरी अंजुमन में कोई भी द्रौपदी के हक में नहीं आया।।
गलत को सही वक्त पर गलत कहना बहुत ज़रूरी है।साँप जाने के बाद लकीर पीटने से कोई फायदा नहीं।। जब कहीं भी कुछ भी गलत हो रहा हो,हमारी मौन स्वीकृति उस मोहर का काम करती है जिसके निशां वक़्त के साथ बेशक धूमिल तो हो जाए, पर मिट नही पाते हैं।।इतिहास,वर्तमान,भविष्य तीनों ही इस बात के गवाह हैं।सही तो है, का वर्षा जब कृषि सुखाने।।
                 स्नेहप्रेमचंद

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

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