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माँ बेटी

एक ही औरत माँ की बेटी और बेटी की माँ भी होती है।
समय बीतने के साथ साथ वो माँ की बेटी कम और बेटी की माँ अधिक बन जाती है।
पर इसका मतलब यह कतई न समझना कि वो अपनी माँ को भूल जाती है,उसकी माँ तो उसमें सदा सदा के लिए जीवित रहती है,उसकी बातों में,ख्यालों में,सोच में,उसके क्रियाकलापों में,उसकी जीवनशैली में,उसके संस्कारों में।
यहाँ पर मौत का भी वश नही चलता, जितना गहरा नाता या लगाव औरत का अपनी माँ से होगा,उसी का दूसरा रूप उसकी बेटी में उसे दिखाई देगा,यह सत्य है।।
           स्नेहप्रेमचंद

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