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लेखन thought by snehpremchand

लेखन आत्ममंथन के गलियारों में विचरण करता हुआ राह में आत्मबोध से मिलता है,आत्म साक्षात्कार कर, आत्मसुधार कर अपना सफर जारी रखता है,लेखन प्रक्रिया है,प्रतिक्रिया है,अनुभव है,सम्वेदना है,अहसास ए दिल है,करुणा है,दूरदर्शिता है,आपबीती है,जगबीती है,अनन्त सोच का परिणाम है विहंगम विस्तृत है,लेखन अहसास ए रूहानियत है,आत्मा का भोजन है,लेखन की कोई सरहदें नहीं,कोई लक्ष्मण रेखा नहीं।सोच जब अपनी मांग में कर्म का सिंदूर भर लेती है,तो परिणाम में लेखन का जन्म होता है।सोच और कर्म ही तो लेखन के मात पिता हैं।लेखन सारगर्भित हो,पथप्रदर्शन करे,
तभी लेखन की सार्थकता सिद्ध होती है।
अनुभव,सम्वेदना,चेतना,सहजता और उदगार इसके भाई बहन हैं।जब हृदय क्षेत्र में भावों की कुदाली चलती है तो लेखन का अंकुर प्रस्फुटित हो जाता है,अल्फ़ाज़ों की हवा,भावों का पानी और चेतना की माटी में एक मजबूत दरख़्त के रूप में उभरता है लेखन,विचार तो हर हृदय में जन्म लेते हैं,बस हर हृदय उन विचारों को प्रकट नहीं कर पाता। इज़हार ए अहसास बस सब को नहीं आता,चयन ए अल्फ़ाज़ नहीं आता।।
लेखन आत्ममंथन के बाद निकला हुआ अमृत है जिससे पूरा जग लाभान्वित होता है।लेखन अधिकार संग बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी है,लेखन आत्मसुधार है समाज सुधार है,चेतना है,परिष्कार है,स्वर्ग का इस धरा पर बहुत बड़ा द्वार है।अच्छा लेखन अहम से वयम की ओर,सवः से सर्वाय की ओर,स्वार्थ से परमार्थ की ओर,सदैव जनकल्याण की ओर ले जाता है।लेखन शिक्षा है संस्कार है,आचार,विचार,प्रेम प्रीत व्यवहार है।
विचारों की अभिव्यक्ति है लेखन।
समझ है लेखन,पकड़ है लेखन,उद्देश्य है लेखन,प्रेरणा है लेखन,ऊर्जा,उत्सव,उल्लास है
लेखन।सुर,लय,ताल,सरगम,संगीत है लेखन।
अहसासों के कुएं में तृप्ति का जल है लेखन।
ह्रदय में हुई भावबारिश की सौंधी सौंधी महक
है लेखन।ह्रदय के आशियाने में भावों का इत्र है लेखन।परिंदे के पंखों की अनन्त गगन में ऊँची उड़ान है लेखन,सोच के तवे पर अभिव्यक्ति की रोटी है लेखन।दिल के चूल्हे में धधकता ईंधन है लेखन।हूक है लेखन,कूक है लेखन।।
प्रेम के तन्दूर में अपनत्व की रोटी है लेखन।
ज़ज़्बातों के यज्ञ में इज़हार ए दिल की आहुति है लेखन।सोच के नयनों में उदगारों का सूरमा है लेखन।अहसासों का ब्रह्मांड है,सोच का मानचित्र है।हिवड़े के कम्प्यूटर में भावनाओं का सॉफ्टवेयर है,लेखनउदघोष,सम्बोधन,
उदबोधन है लेखन।वीर रस से ओतप्रोत लेखन देशभगति है।ह्रदय का मनोविज्ञान है,अनुभूति का संगीत है,फ़िज़ां में गूंजता अनहद नाद है लेखन।
समाज का भूगोल है,ज़ज़्बातों की चित्रकारी है।उदगारों की कविता है।सौंदर्य की सरिता है,
जाने कितने ही ह्रदयों की स्वरलहरियां हैं,
जाने कितने ही परिवर्तनों की जन्मस्थली है,
जाने कितनी ही मज़बूरियों के मस्तक पर सम्झौत्ते का तिलक है।प्रेम रस का पराग है लेखन।चकोर का चाँद है लेखन,सीप मुख में मोती है लेखन,स्वाति की नक्षत्र बून्द है लेखन,भावनाओं का बही खाता है,ह्रदय परिवर्तन की बयार है लेखन,सकारात्मकता की अखण्ड ज्योत है लेखन।मुझे तो ऐसा लगता है आपको??????
                  स्नेहप्रेमचंद

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

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