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शब्द thought by snehpremchand

शब्द से बेहतर नहीं कोई मरहम,
नहीं शब्द से घातक कोई प्रहार।
सोच कर बोलना,बोल कर सोचने,
से सदा ही होता है बेहतर,
करो इस सत्य को स्वीकार।।
शब्द समझौता, शब्द तकरार,
शब्द ज्ञान, है शब्द मति विस्तार।।
शब्द प्रभाव है,शब्द किरदार,
शब्द इज़हार ए अहसास है,
है शब्द सोच और शब्द सुविचार।।
शब्द चेतना,शब्द वेदना
शब्द विनम्रता शब्द अहंकार।।
शब्द गरिमा,शब्द गौरव,
शब्द बन जाते तिरस्कार।
शब्द झूठ है,शब्द है सत्य
शब्द घृणा है शब्द प्यार।।
शब्द तहज़ीब है शब्द तालीम है,
है शब्द ही मन के भावों की तस्वीर।
इतनी ताकत है शब्दों में,
बदल सकते हैं ये तकदीर।।
शब्द वायदा है,प्रतिज्ञा है,शब्द प्रभाव है,
समायोजन,प्रतिबद्धता है शब्द,
शब्द भावों का प्रवाह है।।
शब्द सुकून है,शब्द जुनून है,
है शब्द हौसला,शब्द ही परिष्कार।
भावों का इज़हार शब्द है,
है शब्द ही बिगड़े का सुधार।
शब्द चेतना है,शब्द सोच है,
शब्द कर्म,परिणाम का आधार।
शब्द करुणा,शब्द ममता,
शब्द चोट शब्द आभार।।
शब्द सम्बन्ध हैं शब्द ही नाते,
शब्द प्रेम का सुंदर आकार।
शब्द तहज़ीब है शब्द नज़ाकत
शब्द प्रार्थना है शब्द उपदेश।
शब्द सुलह है शब्द क्लेश।।
शब्द उपमा है शब्द तुलना,
शब्द प्रेम प्रीत का अज़ब सन्देश।।
शब्द उत्साह है शब्द  ऊर्जा उल्लास।
शब्द उतेजना है शब्द रंग रास।।
शब्द गीत है शब्द है सरगम,
शब्द नाद है,हैं शब्द ही मनो विचार।
शब्द आत्म बोध है,आत्म ज्ञान है,
है शब्द स्वयं का स्वयं से साक्षात्कार।
शब्द अस्तित्व शब्द व्यक्तित्व,
शब्द आकार और शब्द ही निराकार।
शब्द चित्र हैं शब्द अनुभूतियाँ,
शब्द आचार,विचार और व्यवहार।
शब्द मन्त्र हैं शब्द हैं गाली,
शब्दों का चयन हमारे संस्कार।
शब्द ऊर्जा है शब्द ऊष्मा है
कहीं कहीं शब्द वजूद में बड़ी दरार।
शब्द गरिमा है शब्द शील है
अश्लील शब्द है चित्त के बुरे विकार।
शब्द काम है शब्द क्रोध है,
शब्द मोह है शब्द लोभ है,
हर भाव को शब्द देता आकार।।
शब्द सम्वेदना हैं शब्द हैं करुणा,
शब्द चेतन अचेतन मनों का सार।
शब्द प्राण हैं शब्द जिजीविषा हैं,
शब्द विविध भावों के विविध प्रकार।
शब्द कटाक्ष हैं शब्द उपहास है,
शब्द सुकून है शब्द परिहास है।
शब्द अशांति है शब्द अवसाद है,
शब्द तमस है शब्द आलोक है।
शब्द प्रगति हैं शब्द विकास है,
शब्द मलिन मनों के धुंध कुहासे,
शब्द पावन मनों के प्रेम भरे पासे।
शब्द समेटे हैं भीतर सागर सी गहराई,
शब्द कहीं कहीं जानें न कभी पीर पराई।
शब्द भावों का इज़हार है,
सुंदर शब्द सुंदर मनों का सच्चा श्रृंगार है।।
               स्नेहप्रेमचंद

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

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