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पिता की ओर thought by snehpremchand

जब कभी भी देखो पिता की ओर,
सोचना कितना त्याग किया है जिसने तुम्हारे लिए,
है इसी से उजली जीवन की भोर।।
जिसके दिल में हमारे प्रेम का
है न कोई ओर न कोई छोर।।
देख कर उसके चित्त में चिंता,
ईश्वर भी हो जाता है विभोर।।
चुपचाप किए जाता है सब,
न कोई दुहाई न कोई शोर।।
भीतर से वो बहुत नरम है
बेशक ऊपर से नज़र आता है कठोर।।
हमारे सुनहरे मुस्तकविल के लिए,
मेहनत करता है घनघोर।
नहीं रोता कभी माँ के जैसे,
पर कभी कभी तो सजल हो जाते हैं,
उसके भी नयनों के कोर।
तपिश से कुम्हला न जाएं उसके,
चमन के फूल और कलियाँ,
हो मधुर सुहानी हर साँझ और भोर।
माँ धरा है धैर्य की,
तो पिता अनन्त आकाश है
माँ ममता का सागर है तो,
 पिता जीवन मे प्रकाश है।
माँ कर देती है इज़हार प्रेम का,
पर पिता को तो वो भी नहीं आता।
मुझे तो जग में इससे बेहतर
 कोई नज़र नही आता है नाता।।
             स्नेहप्रेमचन्द

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