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शामिल thought by snehpremchand

तूँ इस तरह से मेरी ज़िंदगी मे शामिल है,
जैसे जेहन में विचार,समाज मे व्यवहार।
जैसे सागर में जल,वक़्त के लिए कल।।
जैसे दिल मे धड़कन,सुर में सरगम।
जैसे पतंग में डोर,पहर में भोर।।
जैसे अमलतास में रंग पीला।
जैसे गगन का हो रंग नीला।।
जैसे परिंदे के परों में परवाज़।
जौसे साबुन में झाग,चूल्हे में आग।।
जैसे सावन में घटाएँ,वृक्षों पर लताएँ।
जैसे घड़े में पानी,महलों में रानी।।
जैसे संगीत में साज़,कंठ में आवाज़।
जैसे पर्वों में हो पर्व दीवाली।।
जैसे प्रकृति में हो हरियाली।
जैसे नयनों में नूर,हीरों में कोहेनूर।।
जैसे गीता में कर्म,मानस में धर्म।
जैसे लेखन में कविता,जल में सरिता।।
जैसे कविता में भाव,जीवन में चाव।
जैसे दीये में ज्योति,माला में मोती।।
 जैसे दान में कर्ण, मानस में चौपाई,
 जैसे राम में मर्यादा,सिया के लिए रघुराई।
जैसे यज्ञ में आहुति,सृजन में कृति।।
जैसे भानु में तेज,इंदु में ज्योत्स्ना।
जैसे जुगनू में चमक,पायल में छमक।।
जैसे सावन में पानी,बच्चे को कहानी।
जैसे मिठाई में मिठास,ज़िन्दगी में विकास।।
जैसे कोयल में कुक,हिया में हूक।
जैसे चेतना में स्पंदन,पूजा में वंदन।।
जैसे माथे पर टीका,ज्ञान में गीता।
जैसे हवन में रोली,रंगों में होली।।
जैसे तन में श्वास,मन में विश्वास।
जैसे माँ में ममता का सागर।।
ऐसे हुई धन्य मैं तुझे पाकर।।।।
                snehpremchand

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

बुआ भतीजी