Skip to main content

अख्तियार thought by snehpremchand

माँ बाप की प्रॉपर्टी पर तो हमारा पूरा अख्तियार होता है,पर उनकी ज़िम्मेदारियों
 पर नहीं।।क्यों??????,

माँ बाप से हम इसरार कर अपनी सारी
 मन की बातें मनवा लेते हैं पर उनके मन की जानने को कभी कोई खास तवज्जो नहीं देते।क्यों?????

हमें संस्कार की शिक्षा देने वाले माँ बाप के लिए हमारे संस्कार कहाँ चले जाते हैं???

मात पिता बच्चों के इंतज़ार में आधे जागे,आधे सोये रहते हैं,कभी इज़हार ए मोहब्बत नहीं करते,मगर ताउम्र मोहब्बत करते हैं,हम कभी आगे बढ़ कर उन्हें कहते क्यों नहीं????

हमें हर सुख सुविधा मयस्सर हो,इसके लिए
जाने अपनी कितनी ही ख्वाइशें ज़मीदोज़ करने वाले मात पिता कितनी शारीरिक और जेहनी मशक्कत से हमारी तरबीयत करते हैं,हमें इसका इल्म भी नहीं होता।क्यों????

मात पिता कभी शर्तों पर प्रेम नहीं करते,हर हाल में,हर मोड़ पर आजीवन प्रेम करते है।
बच्चे तो प्रोपर्टी के आधार पर करते हैं।क्यों?????

हमें खाने में क्या अच्छा लगता है,हमारा कौन सा पसन्दीदा रंग है,हमें किन बातों से खुशी मिलती है,इन सब बातों की लंबी से फेरहिस्त सदा अपने जेहन में रखने वाले माँ बाप को क्या पसन्द है क्या नहीं,शायद हम जानते ही नहीं और जानना भी नहीं चाहते।क्यों????

शक्ल देख कर हरारत का पता लगाने वाले माँ बाप की गम्भीर बीमारियाँ भी बच्चों को क्यों नज़र नहीं आती????

हमारे चेहरे के आईने को देख हर भाव पढ़ने वाले माँ बाप के एक भी भाव को पढ़ने में हम असफल क्यों हो जाते हैं???

हमारे बेहतरीन मुस्तकबिल के लिए मात पिता अपना वर्तमान हँसते हँसते स्वेच्छा से कुर्बान कर देते हैं,उनके भविष्यकाल में हम उन्हें नज़रअंदाज़ करना शुरू कर देते हैं।क्यों????

माँ बाप अपना सारा पैसा,सारे प्रयास,सारा प्यार,सारी चिंता,सारा चिंतन हमारी परवरिश में लगा देते हैं और हम उनके इलाज के खर्च का भी बंटवारा कर देते हैं।क्यों?????

मात पिता सदैव स्नेहभरी शब्दावली का प्रयोग करते हैं,बच्चे कटाक्षों का चयन कर लेते है,क्यों?????

मात पिता जब हमारी हर भोर का सुनहरा भास्कर बन सकते हैं तो हम उनकी साँझ का 
दिनकर क्यों नहीं बन सकते????

हमारे लबों पर मुस्कान लाने वाले माँ बाप के चेहरों पर छाई उदासी हम पढ़ ही नहीं पाते।क्यों????

ताउम्र प्रेम की बीन बजाने वाले मात पिता के साथ उनकी जीवन की साँझ में हम औपचारिकता का ढोलक बजाते हैं।क्यों???

हमारी हर भोर,दोपहर,साँझ,रात को अपने समय अपने प्रेम से सींचने वाले मात पिता जीवन की साँझ में इतने अकेले से दिखाई देते हैं।क्यों????

मात पिता तन,मन,धन तीनों से ही अपनी औलाद की तरबीयत उर्फ परवरिश करते हैं,
अपने कर्तव्यकर्मों को बखूबी निभाते हैं,पहले तो हमें,फिर हमारे बच्चों को भी उतने ही प्रेम से पालते हैं,फिर हम उन्हें क्यों वो प्रेम,आदर,मान,मीठे बोल नहीं दे पाते,जिनके वे पूर्ण रूप से अधिकारी हैं।।

मात पिता तो वे बागबां हैं जो अपने चमन के हर फूल,हर पत्ते,हर कली,हर डाली को अनुराग की माटी,सौहार्द की खाद,अपनत्व  की धूप देते हैं,फिर हम वो डाली ही क्यों काट देते हैं जो हमे आश्रय देती है। क्यों हर पत्ता शाख से अलग होना चाहता है??क्यों?????

माँ बाप हमारे ख़्वाबों,शौकों को पूरा करने के लिए अपनी ज़रूरतें भी फ़ना कर देते हैं,हमें उनकी ज़रूरतें भी दिखाई नहीं देती।क्यों????

मात पिता ऊँगली थाम हमे पहला कदम चलना सिखाते हैं,हम उनके लड़खड़ाते हुए आखिरी कदमों के सहारा बनने से बचते रहते हैं।क्यों?????

जब हम खुद माँ बाप बनते हैं,तब हमें माँ बाप की अहमियत पता चलती है।पहले क्यों नहीं??

माँ बाप का संसार हमसे शुरू होकर,हम पर ही खत्म हो जाता है,पर हमारे संसार मे वे कहीं खो से जाते हैं।क्यों?????

हमारे हर क्यों,कब,कैसे,कितने का तत्क्षण उत्तर बन जाने वाले मात पिता बाद में हमसे बात करने के लिए इंतज़ार करते रहे जाते हैं,न वे कुछ कहते हैं,न ही हम आगे बढ़ कर आते हैं,ये सिलसिला बरसों जारी रहता है।क्यों???

हमें हर संज्ञा,हर सर्वनाम,हर भाव,हर विशेषण का बोध कराने वाले मात पिता को बच्चे बड़े हो कर झट से कह देते हैं,आपको
बात करने का तरीका नहीं आता।क्यों?????

हमारे जन्म से अपनी मृत्यु तक माँ बाप हमें अपने दिल में बसाते हैं,हम उन्हें प्यार से कुछ पलों से भी महरूम रखते हैं। क्यों??????

हमारे लिए सीमित उपलब्ध संसाधनों में भी वे बेहतरीन प्रयास कर गुजरते हैं,उन्हें हमारे काम करके आनन्दानुभूति होती है।हमें उनका छोटा सा भी काम करने में मशक्कत की अनुभूति होती है।क्यों?????

जो माँ बाप हमारे बिना दूसरे कमरे में भी नहीं रहते,हम एक ही घर में,एक ही शहर में उनसे अलग रहते हैं।उन्हें वतन में छोड़ सदा के लिए परदेस में बस जाते हैं।क्यों??????

जब माँ बाप हमारा ए टी एम बन सकते हैं तो हम उनका आधार कार्ड क्यों नही बन सकते???

बचपन में घर मे घुसते ही जिन माँ बाप को देखे बिना हमें पल भर भी चैन नहीं पड़ता,बाद में उनकी इतनी उपेक्षा क्यों?????

हमारी कितनी ही गलतियों को माफ करने वाले,कितने ही गुनाहों पर पर्दा डालने वाले
माँ बाप की छोटी सी गलती को भी हम जज करते रहते हैं।क्यों?????,


हमें अधिकार तो बहुत प्रिय हैं पर ज़िम्मेदारी नहीं।क्यों??????

धृतराष्ट्र तो जन्मांध था,हम सब कर्मान्ध क्यों बने हुए हैं????????
                           स्नेहप्रेमचंद

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...

बुआ भतीजी