घर औऱ मकान में क्या फर्क है,है बहुत बड़ा फर्क है,जहाँ अपने रहते हैं, जहां की चारदीवारी घुटन का नही सुकून का अहसास कराएँ, वो घर है,जहाँ घर मे घुसते ही माँ की आवाज़ सुनाई दे,पापा अखबार पढ़ते हुए हिदायतें देते हुए दिखाई दें,भाई बहन मौज़ मस्ती लड़ते मानते रूठते दिखाई दें,जहाँ हक और ज़िम्मेदारी साथ साथ रहते हों,ममता का निर्झर सतत बहता हो,क्लेश न हो,प्रेमाधार बहती हो,सब एक दूसरे को उसके गन दोषों संग अपनाते हैं,जहाँ साहित्य,संगीत और कला का सुंदर संगम होता हो,जहाँ साँझा चूल्हा हो,साँझे सुख दुख हों,जहाँ चित्त चैन पाता हो,जहाँ प्रेम ही हर रिश्ते का आधार हो,जहाँ मतभेद तो बेशक हो जाएं,पर मनभेद न हो,जहां बड़ों को आदर और छोटों को प्यार मिलता हो,जहाँ चिंता नही चिंतन होता हो,सदभाव और सौहार्द हो,हास हो परिहास हो,पर कटाक्ष न हो, उपहास न हो,मात पिता का सिर पर साया हो,वो घर है,जहाँ दिल घुटे,सहजता न हो,वात्सल्य की भागीरथी न बहती हो,दिखावा ही हो,लड़ाई क्लेश हो,भेद भाव हो,अपनत्व न हो, स्वार्थ हो,लोभ हो,संवेदनहीनता हो,वो मकान है।।
स्नेहप्रेमचन्द
Comments
Post a Comment