Skip to main content

सिला thought by snehpremchand

स्वेद बहाने से ये रक्त बहाने की,
कैसे,कब,क्यों आ गई बारी??
ये तो ख्वाबों में भी सोचा न था,
क्यों ज़िन्दगी मौत से है हारी??
समझ नही आता,क्या यही है,
सिला ए मेहनत और ईमानदारी???
गगनचुम्बी इमारतें बनाने वालों की,
फुटपाथ पर मीलों चलने
 की आ गई बारी।।
बेबसी हो रही है बेबस,
घुटन का घुटना है जारी।
ज़रूरतें दम तोड़ने लगी हैं,
जख्मी हो रही लाचारी।।
आह घुल रही है फ़िज़ां में,
शोला बन रहा चिंगारी।।
सूखे अधर,पाँव में छाले,
गोदी में बच्चे,सिर पर सामान।
न कोई घर,न रैन बसेरा,
नीचे धरा ऊपर आसमान।।
ये कैसी वक़्त ने अजीब गरीब
 सी तस्वीर उभारी???
तन घायल,मन आहत,
वक़्त ने क्यों गरीब को मार है मारी??
स्वेद बहाने से ये रक्त बहाने की,
 कैसे,कब,क्यों आ गई बारी???
कभी खेतों में खलिहानों में,
कभी होटलों में कभी कारखानों में,
कभी तपती धूप के भीष्ण अंगारों पर,
कभी निष्ठुर जाड़े की कम्पन में,
कभी बाढ़ में कभी तूफानों में,
कभी भीड़ में कभी वीरानों में,
कभी कोयले की काली खादानों में,
कभी ढाबों में कभी कारखानों में,
कभी बोझा ढोते, कभी ठेला खींचते,
कभी बंगलों को चमकाने में,
कभी डाँट कभी दुत्कारों में,
कभी शोषण कभी अत्याचारों में,
कभी कार्यालयों में कभी पराये परिवारों में,
बीत जाती है जिनकी उम्र सारी की सारी।
स्वेद से रक्त बहाने की इनकी क्यों,कब,कैसे
आ गई है बारी????
ऐसा भी क्या,ज़रूरतों की जरूरतें
 पूरी करना पड़ जाता है
  उनपर इतना भारी।
जो छोड़ गाँव की माटी को,
शहरों में बसावट की कर लेते हैं तैयारी।।
कभी अपने नहीं होते उनके ये शहर
शौक पर ज़रूरतें पड़ जाती हैं भारी।।
स्वेद से ये रक्त बहाने की क्यों,कब,कैसे
आ गई बारी??????
समाज की रीढ़ की ही टूटे जाती है कमर,
होगी कैसे फिर अर्थव्यवस्था की सही सवारी????
सब सोचें सर्वहारा वर्ग की,हो सबको
अहसास ए ज़िम्मेदारी।
बेशक सबको सब कुछ न हो मयस्सर,
पर जो कुछ भी हो उन्हें मयस्सर,
उसका तो हो वो मुक्कमल अधिकारी।।
विषमता की चौड़ी होती खाई को
पाटने की सब करें तैयारी।।
कुछ भी तो संग नहीं जाना है
फिर क्यों आपाधापी,क्यों मारामारी??
ये जीवन तो है एक सराय,
आज तेरी तो कल मेरी है बारी।।

             स्नेहप्रेमचंद

ज़रा सोचिए

स्वेद---पसीना
सिला--अंजाम

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

बुआ भतीजी