सलाम है उस घर आंगन को
जहाँ माँ बाप का होता है बसेरा।
सलाम है उस ड्योढी को,
अतिथि देवो भव भाव का होता है सवेरा।
सलाम है उससे शांति कुंज को
जहां क्लेश,द्वेष,न हो,न हो तेरा मेरा।
सलाम है उस हर चौखट को,
जहाँ जाने कितने भूखों को तृप्ति का होता हो अहसास।
सलाम है उस पावन कुटिया को
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