शब्द निशब्द हैं,भाव घायल हैं,
खामोशी भी कर रही है शोर।
धुआं धुआं सा है मन,
है उदास उदासी देखूं जित ओर।।
भीगे भीगे से हैं,
देखो जिसके भी नयनों के कोर।
वो ऐसे कैसे चले गए,
आ गई निशा,हुए बिन भोर।।
ऐसे कैसे हो गया,
ऊपरवाला भी इतना कठोर।।।
चेतना स्तब्ध है,संवेदना चोटिल है
अवरुद्ध कंठ में अटक गया है गोला सा,
चाह कर भी नहीं कर पा रहे शोर।।।
सिसकी सिसक रही है,
धधक रहा है अंतर्मन में कोई ज्वालामुखी,
सूना हो गया है कोई ठौर।।
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