यह प्रेमवचन मात्र एक पेज नही है,यह तो मेरे दिवंगत माता पिता को लेखनी के माध्यम से एक भावभीनी चलती रहने वाली श्रधांजलि है।कुछ मधुर अहसासों की ऐसी अभिव्यक्तियाँ है,जो शायद आप सब भी महसूस करते होगें।मेरी कोशिश है ये एक छोटी सी,जिसको पूरा करने में आप सब का सहयोग अपेक्षित है,ये केवल मेरे ही नही हर दिवंगत माता पिता को श्रद्धांजलि है,जो जाने क्या क्या,किन किन हालातों में हमारे लिए कैसे कैसे प्रयास करते हैं।शब्दों में वो ताकत नही,जो माँ बाप की महिमा का कर सकूं बखान।
कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक
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