सच में दौर बदल जाते हैं
आज के शहंशाह,कल फकीर बन जाते हैं गुजरे लम्हे,बहते दरिया से,कब लौट कर आते हैं।।
आज बदल जाता कल में,
कुछ मिलते हैं,कुछ बिछड़ जाते हैं।।
वक़्त के साथ साथ,बिखराव सिमट जाते हैं।
रूठना,ज़िद्द करना,समझौतों से नयन मिलाते हैं।।
सच में दौर बदल जाते हैं।।
मां बाबुल के आंगन में,
कली पुष्प और ही खिल जाते हैं।
वही आंगन है,वही रसोई,
बस हकदार बदल जाते हैं।।
सच में दौर बदल जाते हैं।।
बुआ की अलमारियों में भतीजियों के
कपड़े सज जाते हैं।
जहां लड़ते,झगड़ते,रूठते मनाते थे
वहां दर्द की बात पर भी मुस्कुराते हैं।।
अक्सर मन की रह जाती है मन में,
कुछ भी तो कह नहीं पाते हैं।।
दौर बदल जाते हैं,सच में दौर बदल जाते हैं।
Comments
Post a Comment